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यही है जिंदगी
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१०४. विरक्ति विशिष्ट शक्ति है ।
धूप स्वर्णधूलि सी फैली हुई है। हवा में सरसराहट है, जैसे सोने के कण इधर-उधर उड़ रहे हैं। मेरा मन... अंतर्मन तत्त्वचिंतन की गहराई में पहुँचा है... और तत्त्वों के मोती खोज रहा है।
मन में प्रश्न उठा : क्या विरक्ति अशक्ति है, मनुष्य की? - वैभव-संपत्ति चली गई और संसार के प्रति विरक्ति आ गई। - प्रियजन की मौत हो गई और हृदय विरक्त हो गया। - शरीर में अनेक रोग पैदा हो गये और दुनिया के प्रति विरक्ति आ गई। - किसी मित्र ने विश्वासघात कर दिया और मन विरक्त हो गया...
- विरक्ति ने संसार का, गृहवास का त्याग करवा दिया। क्या इसको अशक्ति कहा जा सकता है? ___ - वैभव-संपत्ति को पुनः प्राप्त करने का प्रयत्न करना, रोगी शरीर को निरोगी बनाने का प्रयत्न करना, दूसरे प्रियजनों की खोज करना और दूसरे विश्वसनीय मित्र की खोज करना... क्या शक्ति एवं सामर्थ्य की पहचान है? ___ - मेरी कल्पना के आलोक में लंका का राजा वैश्रवण उभर आया। रावण के सामने युद्ध किया, हार गया और समूचे संसार का त्याग कर श्रमण बन गया। क्या यह उसकी अशक्ति थी? नहीं, यह उसका अद्वितीय पराक्रम था। पराजय ने उसकी ज्ञानदृष्टि खोल दी थी - 'यह जीवन बाहरी दुश्मनों से लड़ने के लिए नहीं है, यह जीवन तो भीतर के काम-क्रोध वगैरह दुश्मनों से लड़ने के लिए है।' भीतर के दुश्मनों से लड़ने के लिए श्रमण का जीवन ही जीना पड़ता है, जैसे बाहर के दुश्मनों के साथ लड़ने के लिए सैनिक का जीवन जीना पड़ता है। __- कल्पना के आलोक में श्री रामचन्द्रजी उपस्थित हुए। लक्ष्मण की मौत से वे अत्यन्त उद्विग्न बने थे। उद्वेग से विरक्ति पैदा हुई थी और विरक्ति ने उनको संसारत्याग करवा दिया था। वे महामुनि राम बन गये थे। लक्ष्मण की मृत्यु ने उनकी ज्ञानदृष्टि खोल दी थी - 'संयोग शाश्वत नहीं है। प्रियजनों का संयोग एक दिन वियोग में बदल जाता है। संयोग और वियोग के द्वन्द्व रागद्वेष के प्रबल निमित्त हैं। अब इन द्वन्द्वों से मुक्त होना है, निर्द्वन्द्व बनना है।' निर्द्वन्द्व बनने का पुरुषार्थ विरक्त मुनिजीवन में ही हो सकता है।
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