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यही है जिंदगी
२५९
११६. अपराधी को क्षमा
अपराध की क्षमा नहीं माँगना तो भूल है ही, परन्तु अपराधी को क्षमा नहीं देना भी बड़ी भूल है।
एक वयोवृद्ध महानुभाव ने एक दिन मुझसे कहा : मेरी लड़की ने मेरी इच्छा के विपरीत प्रेमविवाह (लव-मेरेज) कर लिया था। मैंने उसको कह दिया था : 'आज से मैं मानता हूँ कि मेरी लड़की मर गई है, मुझे तेरा मुँह मत बताना...।' बाद में तीन बार वह मेरे पास क्षमा माँगने आयी थी, मैंने तीनों समय उसको दुत्कार दिया था। परन्तु मेरा मन हमेशा अशान्त रहा, बेचैन रहा...। गत वर्ष मैं बीमार पड़ा... मौत मेरे सामने थी। मेरे मन में बेटी को क्षमा कर देने का प्रबल भाव पैदा हुआ... मैं अच्छा हो गया! सीधा बेटी के घर गया। बेटी... जमाई... पौत्र मुझे देखकर स्तब्ध रह गये। मेरी आँखें चूने लगीं... मैंने बेटी के सर पर हाथ रख कर क्षमा दे दी और उसको पीड़ा पहुँचाने के अपराध की क्षमा माँग ली। मैं स्वस्थ हो गया! मेरा मन अब प्रसन्न रहता है...
० ० ० एक अजब घटना! एक युवक ने सुनायी थी यह घटना। 'मुझे मेरे पिता ने घर से निकाल दिया था... मेरी भूल थी। २५ वर्ष तक मैं पिताजी से दूर रहा, न मैंने उनका मुँह देखा, न उन्होंने मेरा | २५ वर्ष के बाद अचानक एक दिन शाम को वे मेरे घर पर आए। मुझे उनकी सीरीयस बीमारी का समाचार मिला था। अचानक उनको घर पर आए देख कर मैं चकित रह गया। उन्होंने मुझे क्षमा दे दी... मेरे अपराधों को माफ कर दिया।
वे बैठे ही थे और डाकिया आया । मेरे नाम का टेलीग्राम था... पिताजी की मृत्यु के समाचार थे... सुबह उनकी मृत्यु हो गई थी! मैं स्तब्ध-सा हो गया। घर में जाकर जहाँ पिताजी बैठे थे वहाँ देखता हूँ तो पिताजी नहीं थे... सिर्फ सुगन्ध थी!
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