Book Title: Yahi Hai Jindgi
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 275
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra तो? यही है जिंदगी २५७ छोटे-बड़े किसी भी जीव को क्लेश न हो, संताप न हो, अशांति न हो... वैसा जीवन मुझे जीना है । वैसा मेरा संकल्प होगा ! www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - मुझे क्या करना चाहिए ? - मुझे वह स्थान छोड़ देना चाहिए । मेरे निमित्त जहाँ किसी को दुःख होता हो, अशांति होती हो, मुझे वहाँ नहीं रहना चाहिए । मेरे मन में भी क्लेश- संताप नहीं होने चाहिए । ऐसा जागृतिपूर्ण जीवन होने पर भी कोई मेरे निमित्त अप्रीति - उद्वेग करे - वैसा स्थान छोड़ने में मुझे कोई दुःख नहीं होगा, अशांति नहीं होगी। मैं स्वस्थ रहूँगा, समताभाव में रहूँगा । - हैं । श्रमण भगवान महावीर अपने साधना - काल में, तापसों के उस आश्रम को, वर्षाकाल में भी छोड़कर नहीं चले गये थे? उनके निमित्त तापसों को अप्रीति हुई थी... क्योंकि भगवान ने उनकी झोंपड़ी का घास खानेवाली गायों को नहीं भगाया। घास खाने दिया था गायों को! स्वयं तो ध्यान में निमग्न रहते थे। तापसों को पसंद नहीं आया... भगवान सहजता से चले गये थे! तापसों के प्रति उनके मन में अप्रीति का भाव नहीं जगा था । अज्ञानी जीवों के प्रति अप्रीति क्या करना ? वे तो करुणा के पात्र होते भगवंत ने अपने श्रमणसंघ के लिए ऐसी ही जीवनपद्धति का प्रतिपादन किया। जिससे किसी भी जीव को दुःख न हो, अप्रीति न हो। - किसी को अप्रीति न हो उस तरह भिक्षा लेने को कहा । किसी को अप्रीति न हो उस तरह निवास करने को कहा। किसी को अप्रीति न हो उस तरह मल-उत्सर्ग करने को कहा ... किसी को अप्रीति न हो उस तरह बोलने को कहा! - फिर भी अप्रीति हो जाये तो वहाँ से चले जाने की आज्ञा दी ! - मेरे निमित्त किसी जीव को अप्रीति न हो, For Private And Personal Use Only

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