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यही है जिंदगी
२५५ - बिना विश्वास के संबंधों को निभाना, 'ऑक्सीजन' पर रहे हुए बीमार मनुष्य जैसा है।
- बिना विश्वास के संबंधों को निभानेवालों का जीवन अशांति, उद्वेग, बेचैनी और कटुता से पूर्ण होता है। ___ - हमारा दूसरों पर विश्वास होना एक बात है। दूसरों का हम पर विश्वास होना दूसरी बात है। हम दूसरों पर विश्वास करते हैं, दूसरों के पुण्य के माध्यम से और दूसरे हम पर विश्वास करते हैं, हमारे पुण्य के माध्यम से |
- विश्वास की आधारशिला 'पुण्यकर्म' है। - शंका और अविश्वास की जड़ है - 'पापकर्म' |
इस गूढ सत्य का जिनको सम्यग्ज्ञान नहीं होता है, वे लोग जीवात्मा को अपराधी मानते हैं। ___- हमारे प्रति कोई शंका की दृष्टि से देखता है, अविश्वास की दृष्टि से देखता है, उस समय उसके प्रति दुर्भावना पैदा हो जाती है। वह दुर्भावना पैदा नहीं होनी चाहिए | हमें यह सोचना चाहिए कि 'मेरे पापकर्म का उदय है। मैं विश्वसनीय नहीं रहा।' __- हमें दूसरों के प्रति निष्प्रयोजन शंका की दृष्टि से नहीं देखना चाहिए। यदि देखना है तो उसके साथ संबंध नहीं रखना चाहिए। ___ - हमने भूल की है, गलती की है और संबंधित व्यक्ति हमें शंका की दृष्टि से देखता है, तो उसके प्रति नाराज नहीं होना चाहिए। ___ - भूल नहीं की है, कोई गलती नहीं की है, फिर भी संबंधित व्यक्ति हमारी
ओर शंका की दृष्टि से देखता है, तो भी उसके प्रति रोष नहीं करना है। 'मेरे पापकर्म के उदय के बिना ऐसा नहीं हो सकता है। पापकर्म के उदयकाल में मुझे विशेषरूप से शांत और स्वस्थ रहना चाहिए।' ___ - अनेक व्यवहारों में बंधे हुए समाज में विश्वसनीयता को निभाना मुश्किल है। दूसरों के व्यवहारों को माध्यम बना कर देखा जाता है।
- व्यक्तित्व निर्मल होने पर भी दुनिया व्यवहार को ज्यादा महत्त्व देती है।
- इसलिए दंभ पैदा हुआ। व्यवहार को अच्छा रखना, व्यक्तित्व भले ही निर्मल न हो।
- दंभ के आधार पर विश्वास कहाँ तक टिकता है? दंभ का परदा कच्चे धागे का होता है।
- दंभरहित विश्वास ही आपस के संबंधों को मधुर एवं दृढ़ बनाये रखता है।
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