________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
यही है जिंदगी
२३७
१०७. सबसे बड़ी समस्या - 'मैं!
विश्वप्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक 'कार्ल जुंग' बीमार हुआ। गंभीर बीमारी थी। जुंग की पत्नी को लगा कि 'जुंग बचेगा नहीं।' वह महिला भी विदुषी थी। उसने जुंग को पूछा : 'आप बड़े वैज्ञानिक हैं। इतने सारे वर्ष आपने मानव-मन के अभ्यास में बीता दिये हैं। क्या आज भी आपको ऐसी कोई बात लगती है कि जो आपके लिये रहस्यमय रही हो?'
जुंग ने मंद स्वर में कहा : 'हाँ, मनुष्य जिसको 'मैं' कहता है, वह 'मैं' मेरे लिये आज भी समस्यारूप है। हम 'मैं' के विषय में कुछ भी नहीं जानते हैं। जो कुछ जानते हैं वह केवल आधारहीन धारणाएँ हैं। ___ - भारत में तत्त्वचिंतन का प्रारम्भ 'कोऽहं' - 'मैं कौन हूँ?' की जिज्ञासा से होता है। ___- विदेशों में तत्त्वचिंतन का प्रारम्भ 'सृष्टि कहाँ से उत्पन्न हुई?' की जिज्ञासा से हुआ है।
- हमारे देश में स्वलक्षी चिंतन हुआ, विदेशों में परलक्षी चिंतन हुआ। क्योंकि हमारे देश में असंख्य वर्षों से 'आत्मा' चिंतन-मनन का विषय रही है। ___ - विदेशों में सृष्टिविषयक चिंतन हुआ, शरीरविषयक चिंतन हुआ, मनविषयक चिंतन हुआ... परन्तु 'आत्मा' विषयक चिंतन नहीं हुआ। यदि हुआ चिंतन, तो बहुत कम हुआ। इसलिए 'मैं' जो कि आत्मा है, वह समस्यारूप रहा।
- आत्मा है। - प्रति शरीर में भिन्न-भिन्न आत्मा है।
- शरीर बदलते जाते हैं, नष्ट होते हैं, आत्मा नष्ट नहीं होती, आत्मा तो शाश्वत है, अविनाशी है।
- आँखों से प्रत्यक्ष शरीर दिखता है, स्वजन दिखते हैं, परिजन दिखते हैं, वैभव-संपत्ति दिखती है... आत्मा नहीं दिखती। इसलिए मनुष्य प्रत्यक्ष दिखनेवाले पदार्थों में उलझ गया। प्रत्यक्ष दिखनेवाले पदार्थों के विचार करता है, चिंता करता है, चिंतन करता है।
- जो मन है वह आत्मा नहीं है। आत्मा मन से भिन्न है।
- मन को, परोक्ष आत्मा के साथ जोड़ने से 'मैं कौन हूँ' - यह समस्या सुलझ जाती है।
For Private And Personal Use Only