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यही है जिंदगी
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११२. भाव का प्रभाव
रशियन वैज्ञानिक 'कामेनियोव' और अमरीकी वैज्ञानिक डॉ. रूडोल्फकीर ने पंद्रह वर्षों में हजारों प्रयोग कर सिद्ध किया है कि सद्भावों से, मंगल भावनाओं से भरा हुआ मनुष्य, अपने हाथों में पानी से भरा हुआ घड़ा ले कर, उन मंगलमय भावनाओं को बहाता रहता है, तो उस पानी में गुणात्मक परिवर्तन आता है।
ऐसा पानी, खेत में बोये हुए बीज पर छिड़का गया, तो बीज शीघ्र अंकुरित हुए। बड़े सुंदर फूल आए और फल आए । पौंधा ज्यादा स्वस्थ बना।
००० जब श्रीमद रत्नशेखरसरिजी की 'श्रीपाल-कथा' पढ़ी थी, उसमें मयणासुंदरी ने यंत्र का पूजन कर, उस पूजन का जल अपने पति श्रीपाल पर छिड़का तो श्रीपाल का कुष्ठरोग मिट गया - ऐसा पढ़ने में आया था। श्रद्धा से मान भी लिया था। क्योंकि साधना के मार्ग में मैं बुद्धि को महत्त्व नहीं देता हूँ| साधनाओं की भिन्न-भिन्न अनेक प्रक्रियाएँ होती हैं। उन सब में क्यों?' और 'कैसे?' मैं नहीं पूछता।।
फिर भी बुद्धि है न? वह अपना काम करती रहती है। 'सिद्धचक्र यंत्र का अभिषेक-जल मयणासुंदरी ने श्रीपाल पर छिड़का... और श्रीपाल का कुष्ठरोग मिट गया! कैसे? क्या वह चमत्कार था? चमत्कार था, तो किसका?'
जब-जब बुद्धि ऐसे तर्क-वितर्क करती तब मैं उसे रोकता था। जो विषय श्रद्धा का होता है वहाँ बुद्धि का प्रवेश नहीं होने देना चाहिए, ऐसा मैं मानता रहा हूँ। अथवा साधना के क्षेत्र में जहाँ बुद्धि रुक जाती है, वहाँ से मैं श्रद्धा को साथ लेकर चलता रहता हूँ। कहीं न कहीं बुद्धि की मर्यादा आ जाती है, श्रद्धा की मर्यादा नहीं है | भावों का प्रभाव!
० ० ० सिद्धचक्र की नौ दिन की आराधना-उपासना करने से मयणासुंदरी के भाव प्रभावशाली बने होंगे | शुभ भाव प्रबल बने होंगे। 'करुणा' तीव्र बनी होगी और ऐसे भावों से परिपूर्ण बन कर उसने सिद्धचक्रजी का जलकुंभ अपने हाथों में लेकर श्रीपाल पर वह जल छिड़का होगा!
- मयणा के भावों पर प्रभाव था सिद्धचक्र का ।
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