________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
यही है जिंदगी
२५१ - पानी पर प्रभाव था मयणा के तीव्र शुभ भावों का। - शुभ भावों से प्रभावित पानी का प्रभाव पड़ा था श्रीपाल पर!
० ० ० बात यहीं पूर्ण नहीं होती है। - शुभ भावों के प्रभावों को ग्रहण करने की पात्रता चाहिए।
- श्रीपाल ने भी सिद्धचक्रजी की आराधना कर के वैसी पात्रता पायी थी। शुभ भावों को ग्रहण करने के लिए भी शुभ भाव चाहिए। __- सिद्धचक्र की आराधना से श्रीपाल ने शुभ... पवित्र... निर्मल भाव पाये थे। उसके मन में किसी भी जीव के प्रति द्वेष-शत्रुता का भाव नहीं रहा था। सभी जीवों के प्रति मैत्री का भाव जगा था। परहित की पवित्र भावना से वह भर गया था।
- मैत्रीभाव से करुणाग्राहकता प्रगट हुई। - करुणाभाव से भाव-प्रभावकता प्रगट हुई। - भाव की ग्राहकता चाहिए, तभी भाव की प्रभावकता फलवती होती है।
- हमें महापुरुषों की परम करुणा के ग्राहक भी बनना है और अपने शुभ भावों के प्रभावक भी बनना है।
- ग्राहक बनने के लिए मैत्रीभाव की वृद्धि करना है। - प्रभावक बनने के लिए करुणाभाव की वृद्धि करना है।
मन्दिर में, हाथों में शांतिकलश लेकर बैठनेवाले, शांतिस्तोत्र का पाठ करते हुए शांतिकलश को पानी से भरनेवाले... यदि मैत्रीभावना से और करुणाभावना से ओतप्रोत हो जायें... तो वह शांतिकलश का पानी अवश्य गुणात्मक परिवर्तन ला सकता है।
- क्रिया शुभ भावों से फलवती बनायी जा सकती है। - ये सारी क्रियाएँ विशिष्ट ज्ञानी पुरुषों की बतायी हुई हैं। - वे ज्ञानी पुरुष करुणा के क्षीरसागर थे, मैत्रीभाव की गंगा के प्रवाह थे। - संसार के सभी जीवों को दुःखों से मुक्त करने की उनकी करुणा थी। - संसार के सभी जीवों का परमहित करने की उनकी मैत्री थी। हे प्रभो! आपके अचिन्त्य प्रभाव से मेरे हृदय में मैत्रीभावना के पुष्प खिलें और मैत्रीभावना के रत्नदीपक जगमगाने लगें... बस, इतनी ही मेरी प्रार्थना है।
For Private And Personal Use Only