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यही है जिंदगी
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१११. दु:ख के कारण जान लो इ
उस दिन मन बहुत बेचैन बन गया... वे भाई-बहन थे। न सुन सकते थे, न बोल सकते थे...।
सुना है और पढ़ा भी है कि दुनिया में मूक और बधिर लाखों की तादाद में हैं, परन्तु सुनना या पढ़ना एक बात है। प्रत्यक्ष देखना, विशिष्ट परिस्थिति में देखना दूसरी बात होती है।
- भाई सुन्दर देहाकृतिवाला था। - बहन भी सुन्दर देहाकृतिवाली थी। - दोनों पढ़ाई में तेजस्वी थे! - श्रीमन्त घराने के ये भाई-बहन थे।
जब वे मेरे पास आए, तब माँ विषादपूर्ण थी, पिता गंभीर थे... परन्तु भाईबहन स्वस्थ थे! __- बेटे-बेटी की मूकता और बधिरता, माता-पिता को व्यथित करती थी और वह स्वाभाविक भी था। ___ - पहले तो मेरा मन भी विषाद से भर गया। उनके प्रति करुणा का भाव बहने लगा... परन्तु बाद में कर्मसिद्धान्त के आधार पर चिंतन शुरू हो गया।
- पापकर्म और पुण्यकर्म का कैसा मिश्र उदय!
- पुण्यकर्म ने उन दोनों को स्नेहपूर्ण माता-पिता दिये हैं, श्रीमन्ताई दी है, शरीर-सौष्ठव दिया है... अच्छी बुद्धि दी है... जबकि पापकर्म ने उनकी वचनशक्ति और श्रवणशक्ति छीन ली है...।
- 'कर्मों की ऐसी कुटिलता क्यों?' मन में प्रश्न उठा। - जो जीव अपनी इन्द्रियों का दुरुपयोग करता है, जो अपने मन का दुरुपयोग करता है उस जीव के साथ कर्म क्रूरता से पेश आते हैं।
- इन भाई-बहन ने पूर्वजन्मों में श्रवणेन्द्रिय का और रसनेन्द्रिय का दुरुपयोग किया होगा। इसलिए इस जन्म में उनको श्रवणशक्ति नहीं मिली और वचनशक्ति नहीं मिली।
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