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यही है जिंदगी
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६. बोली से पहचानि
एक राजा था।
वनविहार करने जंगल में गया। साथ में सेनापति था और सैनिक भी थे। राजा को प्यास लगी। पानी नहीं था। राजा ने चारों ओर देखा, दूर एक झोंपड़ी दिखाई दी। राजा ने वहाँ सैनिक को भेजा।
झोंपड़ी में एक अंध पुरुष बैठा था। उसके पास पानी से भरा घड़ा पड़ा था। सैनिक ने कहा : 'ओ अंधे, एक लोटा भर के पानी दे दे।' ___ अन्ध पुरुष अकड़ गया। उसने कहा : 'चला जा यहाँ से, तेरे जैसे सैनिक से मैं डरता नहीं हूँ। पानी नहीं मिलेगा।' जब पानी लिये बिना सैनिक वापस आया तब सेनापति गया। उसने कहा : 'ओ अन्धे, तू पानी देगा तो तुझे पैसे मिलेंगे।'
अन्ध पुरुष ने कहा : 'तू उस सैनिक का सरदार लगता है। लालच बताकर दबाता है! चला जा यहाँ से, पानी नहीं मिलेगा।'
अब राजा स्वयं उस झोपड़ी में गया । राजा ने अन्ध पुरुष को प्रणाम किया और बोला : 'प्यास से मेरा गला सूख रहा है। एक लोटा पानी दोगे तो महती कृपा होगी बाबा!'
अन्ध पुरुष ने राजा को अपने पास बिठाया और बोला : 'आप जैसे श्रेष्ठ पुरुषों का मैं राजा जैसा आदर करता हूँ। पानी तो क्या, मेरा शरीर भी आपकी सेवा में हाजिर है।'
राजा ने पूछा : 'आप देख नहीं सकते, फिर भी आपने सैनिक को, सेनापति को और मुझे कैसे पहचान लिया?'
अन्ध पुरुष ने कहा : 'राजन्, वाणीव्यवहार से हर व्यक्ति का वास्तविक व्यक्तित्व ज्ञात होता है।'
- क्या वाणी-स्वातंत्र्य ने ऋषि-मुनियों के उपदेश को भुला दिया है?
- ऋषि-मुनियों ने और मनीषियों ने प्रिय और हितकारी वाणी का उपदेश दिया है। उन्होंने कहा है : प्रिय बोलो और स्व-पर के लिए हितकारी बात बोलो।
- अप्रिय बोलनेवाले अपने आपको ‘स्पष्ट वक्ता' मानकर गौरव रखते हैं।
- अप्रिय बोलकर प्रिय बनने की इच्छा रखते हैं! मारते हैं पत्थर और चाहते हैं प्रशंसा!
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