________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
यही है जिंदगी
२४३ ___- कच्चे सूत के धागे के सहारे मैं आकाश को छूने की इच्छा करता रहता
- मुझे शरीर दिखता है, शरीर से प्रेम है। - मुझे आत्मा नहीं दिखती, आत्मा से प्रेम भी नहीं है।
- जीवन बीत रहा है... प्रतिक्षण जीवन कट रहा है...। जहाँ भेद देखना है, वहाँ अभेद देख रहा हूँ। जहाँ अभेद देखना है, वहाँ भेद देख रहा हूँ। ___- जीवन का यह बड़ा विसंवाद है... पता नहीं, कब संवादिता स्थापित होगी मेरे जीवन में...!
For Private And Personal Use Only