Book Title: Yahi Hai Jindgi
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 247
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra - यही है जिंदगी २२९ मनुष्य की एक वृत्ति है कि जो कार्य गलत होता है, समाज में, राष्ट्र में और धर्मक्षेत्र में निषिद्ध होता है - वह कार्य यदि उसको करना होता है तो वह छिपकर करता है! छोटा बच्चा माँ से छिप कर गलत कार्य करता है । पति पत्नी से छिप कर करता है, पत्नी पति से छिप कर करती है, नौकर सेठ से छिप कर करता है ! गलत काम करने वाला यह चाहता है कि मुझे कोई देखे नहीं, मेरा गलत काम कोई जाने नहीं । - www.kobatirth.org गलत काम करने वाला समझता है कि 'मेरा गलत काम किसी ने देख लिया या जान लिया तो मेरी बदनामी होगी, लोगों की निगाहों में मैं गिर जाऊँगा।' इसलिए वह गलत काम, पापकार्य छिप कर करता है । - परंतु यह भी सज्जनों का विचार है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - दुर्जनों को बदनामी का भय नहीं होता है। - सज्जनों की सज्जनता उनको पापभीरु बनाती है, लज्जाशील बनाती है, इसलिए वे पाप करते हैं तो छिप कर करते हैं। - ऐसे सज्जनों को समझना चाहिए कि पूर्ण आत्माओं से कुछ भी छिपा हुआ नहीं है। गुफा में जाकर पाप करेंगे तो भी वे देखते हैं और सागर के तले जाकर पाप करेंगे तो भी वे जानते हैं । इसलिए छिपकर भी पाप करने का नहीं सोचें । • प्रकट तो नहीं, छिप कर भी मनुष्य पाप नहीं करता है, तब वह 'महान' बनता है। - ऐसा जीवननिर्माण करना है कि किसी से कुछ छिपाना न हो, किसी से कुछ भी गुप्त न रखना हो । जानता हूँ : व्यवहारों में उलझे हुए जीवन में यह बात संभव नही है .... आशाएँ... तृष्णाएँ... आकांक्षाएँ... कोई न कोई प्रगट या प्रच्छन्न पाप करवाती ही रहती है...। हे सिद्ध भगवंत! जैसे आप हमें बाहर से और भीतर से जानते हैं... देखते हैं... वैसे आप अनंत शक्ति के निधान हैं । आप हम पर कृपा करें कि हमारे जीवन में आपको कोई पाप न दिखाई दे । हमारा जीवन ही ऐसा हो जाए । For Private And Personal Use Only

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