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यही है जिंदगी
- ज्ञाता और दृष्टा बनने का प्रयत्न करूँगा। - स्वजन-परिजनों से ममत्व तोड़ने का प्रयत्न करूँगा। - वैभव-संपत्ति की आसक्ति को नामशेष कर दूंगा। - शरीर को केवल साधन के रूप में ग्रहण करूँगा। - मन को, आत्मज्ञान के शास्त्रों के स्वाध्याय में लीन रखूगा। - उचित कर्तव्यों का निराशंस भाव से पालन करूँगा।
मेरी यह विकासयात्रा इस जीवन में पूर्ण न भी हो, अन्तिम बिन्दु पर न भी पहुँच सकूँ, मुझे अफसोस नहीं होगा। क्योंकि आने वाले जन्म में यही विकासयात्रा आगे बढ़ने वाली है। जहाँ से यात्रा अधूरी छूट गई होगी, वहाँ से शुरू होगी। मुझे विश्वास है कि तीन या सात/आठ जन्मों में मैं अन्तिम बिन्दु पर पहुंच जाऊँगा। God is the Omega Point.
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