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यही है जिंदगी
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१०२. तुलना करें, पर किससे?
मस्जिद में एक अमीर पुरुष नमाज पढ़ने आया। उसके पैरों में हीरे-मोती जड़े हुए जूते थे। शेख सादी ने उस अमीर को देखा और उसके जूते भी देखे। उन्होंने उस अमीर को पूछा तो मालूम पड़ा कि वह वर्ष में एक बार ही नमाज पढ़ने आता है।
शेख सादी मन में सोचने लगे - 'मैं प्रतिदिन कई बार नमाज पढ़ता हूँ, फिर भी मेरे पास फटे हुए जूते हैं और यह अमीर साल में एक बार नमाज पढ़ता है, फिर भी उसके जूते जड़ाऊ...।' वे मन में दुःखी होते हैं।
थोड़ी देर के बाद एक अपंग, कि जिसके दोनों पैर कटे हुए थे, वह अपने शरीर को घसीटता हुआ मस्जिद में नमाज पढ़ने आया । उसको भी शेख सादी ने देखा... वे गहरे विचारों में डूब गये... उन्होंने आकाश की ओर देखा ओर बोले - 'खुदा! तूने मुझे दो अच्छे पैर दिये हैं, यह क्या कम कृपा है?'
- तुलना। - हर बात में दूसरों से तुलना। -- मनुष्य का क्या यह स्वभाव बन गया है?
जो गरीब है, धन से और मन से - वे लोग श्रीमन्तों से अपनी तुलना करते रहते हैं। 'वे श्रीमन्त क्यों? हम गरीब क्यों?' __ ज्ञान तो होता नहीं! स्वयं अपने को प्रश्न तो पूछ लेते हैं, जवाब सही आता नहीं... गलत जवाब मिलता है और गुमराह हो जाते हैं। ___ - श्रीमन्त भी, जो मन से श्रीमन्त नहीं होता, वह अपने से बड़े श्रीमन्त की ओर देखता है और तुलना करता है । 'उसके पास जो संपत्ति है, मेरे पास तो उसकी दस प्रतिशत भी नहीं...।' अपने को हीन भावना से भर देता है।
- आज श्रीमन्तों और श्रीसम्पन्ता की ओर लोगों का आकर्षण बढ़ रहा है। - सबको श्रीमन्त होना है।
- अपने से ज्यादा गरीब की ओर, अपने से ज्यादा विकल की ओर, अपने से कुछ कम अक्लवालों की ओर, अपने से कुछ कम ज्ञानवालों की ओर यदि देखा जाये, तो मन का कुछ समाधान मिल सकता है।
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