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यही है जिंदगी
- परमात्मदशा यानी पूर्णता। कभी अपूर्ण नहीं बने वैसी पूर्णता। - मनुष्य ही वैसी परमात्मदशा की ओर विकासयात्रा प्रारंभ कर सकता है। - भौतिक क्षेत्र में विकास हो सकता है, परन्तु उसका कोई अन्तिम बिन्दु नहीं है। रास्ते में कहीं पर भी विकास विनाश में बदल सकता है, मनुष्य के हजारों प्रयत्नों के बावजूद भी... ___ - आध्यात्मिक क्षेत्र में विकास का अन्तिम बिन्दु है। असंख्य... अनंत आत्माएँ उस अन्तिम बिन्दु तक पहुँची हुई हैं! सर्वज्ञ पुरुषों ने देखा है और बाद में बताया है। - हमारे भीतर उस अन्तिम बिन्दु तक पहुँचने की योग्यता पड़ी हुई है। 'डी चार्डिन' ने कहा है - Omega is also the Alpha! जो अन्तिम है वही पहला भी है! - कितनी रहस्यपूर्ण बात कही है चार्डिन ने! अन्तिम है परमात्मा, पहली है आत्मा! आत्मा में ही परमात्मा निहित है!
हर आत्मा का शुद्ध स्वरूप परमात्मा का है। विकासयात्रा में अशुद्धियाँ दूर करने की होती हैं और शुद्ध स्वरूप प्रगट करते हुए चलना है। जब सभी कर्मजन्य अशुद्धियाँ दूर हो जायेंगी, आत्मा ही परमात्मा बन जायेगी!
- पहली आत्मा है, अन्तिम परमात्मा है। स्वयं यह निर्णय करें कि - मैं आत्मा हूँ। - अभी मैं राग-द्वेष-मोह आदि दोषों से अशुद्ध हूँ, - मेरा वास्तविक स्वरूप यह नहीं है। - मैं वास्तव में शुद्धात्मा हूँ, परमात्मा हूँ। - मुझे अपना वास्तविक स्वरूप पाना है। - इसलिए इस जीवन में वही काम करना है। - दुनियादारी के काम केवल साक्षीभाव से करूँगा।
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