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यही है जिंदगी
२१७ - हर व्यक्ति का स्वप्न बना है अपार संपत्ति, अमाप वैभव । इसलिए जो कुछ करना पड़े वह करने को तैयार हैं। अन्याय, अनीति, धोखाधड़ी, चोरी, लूटखसोट... अपहरण... और हत्या । अर्थलिप्सा कौन-सा पाप नहीं करवाती है?
- सबको सोना चाहिए। किसी को सोना बनना नहीं है।
- जो सोने जैसा शुद्ध बन जाता है, वह सोना तो क्या हीरे, मोती और नीलम को भी ठुकरा देता है। उसकी परिशुद्ध दृष्टि में हीरे-मोती वगैरह पत्थर दिखते हैं।
- पैसे के पागलों को पत्थर में हीरे दिखते हैं। - पैसे के पागलों को धूल में स्वर्ण-कण दिखते हैं।
- पैसे के पागलपन ने पवित्र सम्बन्धों की पवित्रता नष्ट कर दी है। हर सम्बन्ध में माध्यम बन गया है, पैसा। - बिना पैसे के कोई सम्बन्ध नहीं रहा।
० ० ० एक महानुभाव ने कहा : अब तो धर्म का सम्बन्ध भी पैसे से जुड़ गया है। धर्मस्थानों में धार्मिकों का महत्त्व नहीं रहा। श्रीमन्तों का महत्त्व बढ़ गया है।
- श्रीमन्त को सदाचारी होना, दयालु होना, गुणवान होना, व्रतधारी होना जरूरी नहीं है... यदि वह पांच/दस लाख रुपये धर्मक्षेत्र में खर्च कर देता है तो! ___ - जो ब्रह्मचारी हैं, व्रतधारी हैं, गुणवान हैं... दयालु हैं, परन्तु श्रीमन्त नहीं हैं, हजारों-लाखों का दान नहीं दे सकते हैं, उनका अब कोई महत्त्व नहीं रहा धर्मस्थानों में।
- मनुष्य को सोना बनाने का काम, जो साधु-संतों का काम था, वे अब मनुष्य से सोना पाने का काम नहीं कर रहे हैं क्या?
मैं यह नहीं कहता कि उनका कोई निजी स्वार्थ होगा। मंदिर बनवाते होंगे, धर्मशाला बनवाते होंगे, शाला-महाशाला बनवाते होंगे... परंतु मनुष्य को सोना बनाने का काम अधर में लटक गया है।
- यदि मनुष्य सोना नहीं बना, तो वह मंदिरों को भ्रष्ट करेगा, मंदिरों को नष्ट करेगा।
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