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यही है जिंदगी
२१३ दर्दी को रोगमुक्त कर सकती हो? उसने कहा : 'कुछ नहीं है, केवल ईश्वर के प्रति विश्वास से काम करती हूँ। ईश्वर-विश्वास से मैं रोगी के स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करती हूँ। विश्वास फलित होता है और रोगी निरोगी बन जाता
है।'
__विनम्र जूना ने सारा यश ईश्वर को दिया! यही उसकी सफलता का रहस्य होगा। लोग भले जूना को यश दें, जूना तो ईश्वर को ही यश देती है। अहंकार को अपने हृदय में कभी प्रवेश नहीं देती है। ___ - मनुष्य में कुछ विशेषता आती है... कि साथ ही अहंकार और तिरस्कार प्रवेश कर जाते हैं। 'मैं ही सब कुछ हूँ,' यह होता है अहंकार । 'दूसरे कुछ महत्त्व नहीं रखते...' यह होता है तिरस्कार |
- अहंकार और तिरस्कार से मुक्त व्यक्तित्व की दिव्यता स्वतः आविर्भूत होती है। वह दिव्यता ही श्रद्धारूप होती है। श्रद्धावान में श्रद्धेय की दिव्यता संक्रान्त होती है। श्रद्धेय से श्रद्धावान् का जब अभेदभाव से मिलन होता है तब श्रद्धेय की दिव्य शक्ति श्रद्धावान की दिव्य शक्ति बन जाती है। ___- श्रद्धा में से उत्पन्न होने वाले चमत्कारों को बुद्धि से नहीं समझा जा सकता। तर्क से प्रमाणित नहीं किया जा सकता। श्रद्धाजन्य चमत्कारों को श्रद्धा से ही मानने होंगे।
- जैसे सागर को प्याले में नहीं भरा जा सकता... वैसे आत्मा की एवं परमात्मा की अनंत... निःसीम शक्तियों को तर्क के/बुद्धि के प्याले में नहीं भरा जा सकता। - बुद्धि में से अहंकार जनमता है... - श्रद्धा में से विनम्रता जनमती है।
- विनम्रता में से नमस्कार जनमता है और नमस्कार 'महामंत्र' बनकर दिव्यता को प्रदर्शित करता है।
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