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यही है जिंदगी
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९६. तुम ही तुम्हारे साथ हो ।
उसने कहा : मेरा एक ही सहारा था... वह टूट गया... मेरा तो हौसला ही टूट गया... कुछ समझ में नहीं आता कि क्या करूँ?
मेरे मित्र, स्वयं ही स्वयं का सहारा बनो। टूटते हुए दिल के हौसले को स्वयं ही सहारा दो। स्वयं ही हृदय की व्यथाओं को सहला लो। ___ 'किसी ने मेरे गम को, मेरी व्यथा को नहीं जाना...' ऐसी शिकायत भी मत करो। अपनी पीड़ाओं को पी जाने की तैयारी करो । एक कटु बात कहता हूँ... मित्र को कह सकता हूँ
स्वयं की कुछ भ्रान्तियों को छोड़ दो। असीमित कामनाओं को मिटा दो। जानते हो कि भ्रान्तियों ने और कामनाओं ने तुम्हारे मन को धूमिल सितारे जैसा बना दिया है। - पर की आशा... यह तुम्हारी पहली भ्रान्ति है। - दूसरों का भरोसा... यह तुम्हारी बड़ी गलती है। किसी को क्या कि तुम्हारी भँवर में फँसी नाव को बचाने के लिए मझधार में कूद पड़े? तुम स्वयं ही नाव को खेकर किनारे तक ले जाओ।
स्वयं के ही भरोसे जिन्दगी का क्रम बनाओ। स्वयं के ही भरोसे जीवनयात्रा का क्रम बनाओ। स्वयं के ही भरोसे योजना परियोजना बनाओ। कोई यदि साथ नहीं देता है तो भी अपने विश्वास को टूटने मत दो। एक कवि ने कहा है :
_ 'सहारे तो सहारे हैं किसी दिन टूट जायेंगे,
किनारे तो किनारे हैं किसी दिन छूट जायेंगे। किसी को क्या कि तुम्हारे अज्ञान के अन्धकार को मिटाने के लिए वह ज्ञान का दिनकर बनकर आए? तुम दूसरों के भरोसे पर मत रहो। तुम ही सम्यग्ज्ञान के दीपक को अपने आत्ममंदिर में स्थापित करो। पर की आशा छोड़ दो। तुम्हारी स्वयं की प्यास कम कर दो... फिर कोई पानी का निर्झर बन कर तुम्हारे पास नहीं आता है... तो तुम्हें क्या?
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