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यही है जिंदगी
हे भगवंत !
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२०९
मैं तो आपके अनंत गुणों के सिन्धु के दो बिन्दु भी नहीं जानता हूँ। मेरा अज्ञान प्रगाढ़ है। परन्तु, आपके प्रति मेरे हृदय में अविचल श्रद्धा अवश्य है । क्या अज्ञानी परन्तु श्रद्धावान् जीव के प्रति आपकी करुणा का प्रवाह नहीं बहता है? क्या श्रद्धावान् का प्रेमप्रवाह आप तक नहीं पहुँचता है ?
श्रद्धा ने ही मुझे मुखर बना दिया है। तेरे गुण गाने की मेरी क्षमता नहीं है... क्योंकि मैं कोई कवि - महाकवि नहीं हूँ । मेरे पास शब्दों का वैभव नहीं है... भावों की अभिव्यक्ति करने की कला नहीं है ।
थोड़े से श्रद्धा के सुमन हैं मेरे पास । तेरे चरणों में चढ़ा दिये हैं । तू अवश्य स्वीकार करेगा न?
मेरे प्राणों के आधार !
तेरे बताये हुए मोक्षमार्ग पर चलने की चेष्टा करता हूँ... परन्तु पैर लड़खड़ाते हैं। शक्ति पर्याप्त नहीं है। तेरे प्रति प्रेम है... परन्तु तेरे पास पहुँचने की शक्ति नहीं है। अशक्ति महसूस करता हूँ ।
तेरे वचन मुझे खूब प्यारे लगते हैं, परन्तु जीवन में उन वचनों का यथोचित पालन नहीं कर पाता हूँ। प्रयत्न करता हूँ... परन्तु मेरा प्रयत्न मुझे सन्तुष्ट नहीं करता है।
प्रभो, तेरा धर्मशासन मुझे बहुत ही अच्छा लगता है, परन्तु मेरी राग-द्वेष की प्रबलता... मुझे उस धर्मशासन की आराधना नहीं करने देती।
किसी जीव की पामरता को आप क्षमा प्रदान करते हो या नहीं - मैं नहीं जानता, परन्तु पामर को परमेश्वरत्व प्रदान करने से संसार में आपकी कीर्ति अवश्य फैलेगी!
हे अरिहंत भगवंत !
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आपके वचनों का... उपदेशों का संसार में निरन्तर प्रसार करता रहूँ.... और संतप्त जीवों को शांति देता रहूँ... बस इतनी दया करना मुझ पर ....
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