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यही है जिंदगी उसका अर्थ करते हैं। विसंवादों की कोई सीमा नहीं है। न कोई अवधिज्ञानी महात्मा है... जिनके पास जाकर शंकाओं का समाधान कर सकें।
हे जिनेश्वर!
आपने साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका - इस प्रकार चतुर्विध संघ की स्थापना की। आपका यह चतुर्विध संघ एक जंगम महातीर्थ हो गया। जिस किसी व्यक्ति को भवसागर तैरना है, वह इस महातीर्थ की यात्रा करता है और पावन होता है। विश्व में यही एक ऐसा महातीर्थ है कि जिसको देव-देवेन्द्र भी नमन करते हैं।
हे करुणासिन्धु!
धर्मतीर्थ की स्थापना कर, आपने समग्र जीवसृष्टि पर महान उपकार किया है। एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय - समग्र जीवसृष्टि के प्रति दया-करुणा की वृष्टि की है। 'सभी जीवों को सुख प्रिय है, दुःख किसी को भी प्रिय नहीं है - इसलिए किसी भी जीव की हिंसा नहीं करनी चाहिए,' ऐसा उपदेश देकर जीवों को अभयदान दिया।
'अनेकान्तवाद' का सिद्धांत बताकर हर बात को सही अर्थ में समझने का मार्ग बताया। एकान्तवाद के दुराग्रह को मिटाने की दिव्य ज्ञानदृष्टि प्रदान की। हे वीतराग नाथ!
आपके चरणों में विश्व की बड़ी-बड़ी विभूतियाँ नतमस्तक होती हैं। गहन से गहन प्रश्नों का समाधान, प्रज्ञावंत लोग आपसे पाते हैं। आपके सन्निधान मात्र से रोगी लोग नीरोगी हो जाते हैं। जहाँ-जहाँ आपका चरणस्पर्श होता है... वहाँ सुख, आनंद और उल्लास से वातावरण भर जाता है। हे नाथ, कब मुझे आपके चरणकमल की सेवा प्राप्त होगी? कब आपके वदन-कमल पर गुंजारव करने वाला भ्रमर बनूँगा?
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