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यही है जिंदगी
- शब्दों में आनंद हो। - दिल में आनंद हो।
- मन में से आनंद की अविरत धारा प्रवाहित हो। कैसी भी बाह्य परिस्थिति हो... धन चला गया हो, स्नेही-स्वजनों का वियोग हो गया हो... दुनिया ने कलंकित कर दिया हो... शरीर रोगग्रस्त बन गया हो... फिर भी मन में से आनंद का प्रवाह बहता रहे।
- एक दिन, स्वामी रामतीर्थ को सरदार पूरणसिंह ने पूछा था : 'आपके ज्ञान का रहस्य क्या है?' 'मेरे ज्ञान का रहस्य इतना ही है : हर हालत में खुश रहना।' 'इससे क्या लाभ?'
'जब से मैं पूर्ण निश्चित बना हूँ तब से सृष्टि की शहनशाहत का अनुभव करता हूँ।'
- कितनी अच्छी और रहस्यपूर्ण बात कही है स्वामी रामतीर्थ ने? सम्यग्ज्ञान मनुष्य को निश्चित निर्भय बनाता ही है। निश्चित-निर्भय बना मनुष्य सदैव आनंद का अनुभव करेगा ही।
- आनंदपूर्ण व्यक्ति के सान्निध्य मात्र से ही दूसरों के क्लेश-उद्वेग दूर हो जाते हैं। __- जिन लोगों के निकट ऐसे आनंदपूर्ण व्यक्तित्व वाले महापुरुष हों, वे धन्य बनते हैं। ऐसे महापुरुषों के सान्निध्य से जिनको आनंद का अमृत प्राप्त होता है, वे धन्यातिधन्य बनते हैं।
- आनंद का अभ्यास करना चाहिए | जब कभी प्राकृतिक सौन्दर्य से हरेभरे क्षेत्र में जाएँ, आँखें मूंदकर... प्रकृति का ही, प्रफुल्ल प्रकृति का ही दर्शन करें... आनंद को भीतर में भरते रहें। ___ - जब कभी किसी रमणीय तीर्थ में जाएँ... लोगों की भीड़ न हो, कोलाहल न हो... नयनरम्य परमात्म-प्रतिमा के सामने बैठ जाएँ... आँखें मूंदकर उस पवित्र वातावरण को भीतर में भरें... आनंद से परिपूर्ण परमात्मा से आनंद प्राप्त करें। ___ - जब कभी किसी प्रसन्नमना महामुनि के पास जाएँ... उनके सामने मौन बैठ कर, आनंद की अनुभूति करें।
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