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यही है जिंदगी
१९८ तेरे ही चरणों में आ सकूँ... और मेरी सारी थकान दूर हो जाये, ऐसी कृपा मुझ पर बरसाना...।
हे कृपानिधि!
संसार में मुझे जितने नुकसान होने हों, हो जाये। संसार में मेरे साथ जितनी प्रतारणा होनी हो, हो जाये; परन्तु मेरे हृदय में इन बातों का गम न हो - इतना कर दोगे?
'मेरे कष्टों का बोझ आप उठा लो...' ऐसा मैं कभी नहीं कहूँगा, परन्तु वह बोझ उठाने की मुझे शक्ति तो दोगे न?
जब वेदनाओं के घनघोर बादल घिर आयें... और पैरों के नीचे से धरा फिसल जाती हो... उस समय भी, 'आप मेरे साथ हो ही,' ऐसी मेरी श्रद्धा बनी रहे... वैसा तो कर दोगे न?
हे दिव्यातिदिव्य!
इतना चाहता हूँ कि प्रति प्रभात में, मुझे आपके दर्शन हों! आपका मिलन हो... बस, फिर सुख मिले या दुःख मिले... मैं सब कुछ सहन कर लूँगा | कोई शिकायत नहीं करूँगा कि 'आपके होते हुए मुझे दुःखों ने क्यों घेर लिया है?'
हे जगबन्धु!
तेरा बताया हुआ मार्ग मुझे अच्छा लगता है, परन्तु उस मार्ग पर चलने की मेरी शक्ति नहीं है... फिर भी मैं उस मार्ग पर चलने की बाल-चेष्टा करता हूँ | गिरता हूँ... चोट भी आती है... फिर खड़ा होकर चलता हूँ... कभी थोड़ी देर के लिये मार्ग से नीचे भी उतर जाता हूँ...।
मैं कोई महान साधक नहीं हूँ... मैं आपका अनन्य भक्त हूँ,' ऐसा भी मेरा कहना नहीं है... प्रभो, हाँ, मैं आपसे प्रेम करता हूँ...' इतना तो कहूँगा | क्या मैं आपके पास पहुँचूँगा?
सघन रात्रि है, मार्ग अनजान है, विघ्न है, भय है... आना आपके पास है...
क्या होगा, मैं नहीं जानता हूँ। एक बात निश्चित कर ली है 'आपके पास पहुँचना है।'
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