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यही है जिंदगी
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९३. परमात्मा की साधना 3
हे वीतराग! अणगार बन कर आप पृथ्वीतल पर विचरते हैं।
- आप कमल-पत्र की तरह निर्लेप होते हैं। कमल-पत्र के ऊपर पानी की बूंद भी नहीं चिपकती है! आपका आत्मभाव भी वैसा ही होता है। राग-द्वेष की एक बूंद भी आप पर नहीं चिपक सकती है।
- आपकी गति अप्रतिहत होती है जीव की तरह! आत्मा जब कर्मबंधन से मुक्त होती है... एक समय में ही सिद्धशिला पर पहुँच जाती है... मार्ग में कोई वस्तु गति में रुकावट नहीं कर सकती है... वैसे हे भगवंत! आप इस पृथ्वी पर भी अप्रतिहत गति करने वाले होते हो! __- आप गुप्तेन्द्रिय होते हो। जैसे कूर्म अपने अंगोपांगों को छिपाकर रखता है, वैसे आप अपनी इन्द्रियों की चंचलता को मिटा कर, शुभ योगों में प्रवृत्त करते हो। ___- जैसे पक्षी निर्बंधन होकर आकाश में उड्डयन करता है, वैसे आप निबंधन होकर भावालोक में उड्डयन करते हो। ___ - 'भारंड' नाम का पक्षी जैसे अप्रमत्त भाव से जीवन जीता है वैसे आप भी अप्रमत्त भाव से अपनी जीवनयात्रा करते रहते हो। आपके तन-मन में तनिक भी प्रमाद को अवकाश नहीं होता है। ___- जैसे बलिष्ट वृषभ अकेला ही ३२ मण का बोझ वहन करता है, वैसे आप भी महाव्रतों का हजारों टन का बोझ वहन करते हो।
- कुँजर जैसे आप शूरवीर होते हो, - सिंह के समान आप निर्भय होते हो, - सागर जैसे आप गंभीर होते हो... - पूर्णिमा के चन्द्र जैसे आप सौम्य होते हो। - तपतेज से आप सूर्य के समान देदीप्यमान होते हो!
- संसार के जीवों को मैत्री, करुणा, प्रमोद और माध्यस्थ्य भावनाओं का उपदेश देकर हर्षविभोर करते हो। आधि-व्याधि से उत्पीड़ित जीवों के हृदय
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