Book Title: Yahi Hai Jindgi
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 218
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यही है जिंदगी २०० ९१. परमात्मा का प्रभाव जो जाणदि अरिहंते दव्वत्तगुणत्तपज्जवत्तेहिं। सो जाणदि अप्पाणं मोहो खलु तस्स जादि लयं ।। 'जो अरिहंत को द्रव्य से, गुण से और पर्याय से जानता है, वह आत्मा को जानता है और उसका मोह नष्ट होता है।' 'प्रवचनसार' का यह कथन जब पढ़ा तब मेरा मन उल्लसित हुआ। मोहनाश का श्रेष्ठ और सरल उपाय मिल गया! 'अरिहंत' परमात्मा को, उनके गुणपर्यायों को गाते हुए स्मृतिपथ में लाने का प्रयत्न किया। इस प्रयत्न में सहायक बना है एक प्राचीन ग्रन्थ 'अर्हन्नमस्कारावलिका'। हालाँकि यह ग्रन्थ प्राकृत-गद्य है...| 'अरिहंत' विषयक चिन्तन-परिभावन के लिए अत्यन्त उपयोगी है। मेरे लिए तो यह ग्रन्थ काफी उपयोगी सिद्ध हुआ है। आईए, 'अरिहंत' परमात्मा को, उनकी अलौकिक विशेषताओं को गाते हुए, उनके पावन चरणों में वन्दना करें__ हे भगवन्त! आप माता के उदर में आते हैं तब माता चौदह स्वप्न देख कर हर्षित होती है। समग्र विश्व को हर्षित करने का प्रारम्भ माता से ही हो जाता है! ___ हे परमात्मन्! माता के उदर में - गर्भावास में भी आपको तीन ज्ञान होते हैं - मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान | गर्भावस्था में भी आपके पास श्रेष्ठ प्रज्ञा होती है, समग्र शास्त्रों का ज्ञान होता है और आत्मप्रत्यक्ष ज्ञान होता है | हे जिनेश्वर! जब आपका जन्म होता है, तब देवेन्द्र आपको मेरुगिरि पर ले जाते हैं। ६४ इन्द्र मिलकर आपको नहलाते हैं! हर्षान्वित होकर आपके सामने नृत्य करते हैं। वे जानते हैं कि आपका जन्म जगत के जीवों के उद्धार के लिए हुआ है। आपका जन्म होते ही तीनों लोक में प्रकाश फैल जाता है और सभी जीव क्षणिक आनंद की अनुभूति करते हैं | हे हितकारी! दिक्कुमारिकाएँ आपकी सेवा करती हैं अनन्य प्रेम से! देवेन्द्र कुसुमांजली से आपकी पूजा करते हैं अनन्य भक्ति से । क्षीरोदधि के जल से For Private And Personal Use Only

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