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यही है जिंदगी
१९० देनी पड़ेगी। केवल मनोकामनाओं की पूर्ति और चमत्कारों का मनोरथ बाँधते हुए देवदर्शन, देवपूजा, गुरुदर्शन... या धर्मक्रियाएँ करते रहने से महामानव नहीं बना जा सकता।
- याद रखें, अपनी सत्ता एवं गरिमा व्यापक है। कूपमंडूक की तरह या पिंजरे के पक्षी की तरह सीमाबद्ध रहकर जीवन व्यतीत करना शोभारूप नहीं है। संकीर्णता का त्याग करें, विशाल क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए कटिबद्ध बनें।
- हमें तो चाहिए चन्दन से महापुरुष! कल्पवृक्ष से महापुरुष! स्वाति की जलबूंद से महापुरुष! पारसमणि से महापुरुष!
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