________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
यही है जिंदगी
१८८
व८७. अपने को ऊँचाइयों पर पहुँचना है 3
एक प्रश्न : ऐसा पुरुष कहाँ मिलेगा कि जो चंदन सा हो, जो स्वाति की जलबूंद सा हो? जो पारसमणि सा हो? जो कल्पवृक्ष का जीवंत उदाहरण हो? ___- मेरे पास इस प्रश्न का उत्तर नहीं है। कुल के जैन और वेश के साधु बढ़ते जा रहे हैं... परन्तु वे इस प्रश्न के उत्तर नहीं बन सकते। ___ - उदात्त, भावनाशील और महान आदर्शों को जीने वाले मनुष्यों का अकाल पड़ा है। ऐसे लोग ही देश का, समाज का, धर्म का और समय का सौभाग्य होते हैं। ऐसे पुरुष ही सृष्टि का जीवन्त वैभव होते हैं। आज वह वैभव कहाँ है?
- आज कितने लोगों के सीने में हृदय धड़कते हैं? कितने लोगों में भावना, संवेदना... करुणा नाम के तत्त्व जीवन्त हैं? कितने लोगों में ममता, आत्मीयता, शालीनता और स्नेह-सौजन्य का अमृत पाया जा सकता है? ___ - तो फिर चन्दन से लोग... पारसमणि से लोग... कल्पवृक्ष से लोग कहाँ मिल सकते हैं?
- गुणात्मक व्यक्तित्व की उपेक्षा कर, आध्यात्मिक उन्नति की उपेक्षा कर, आज मनुष्य, दिव्य विभूतियाँ और सिद्धियाँ प्राप्त करने के दिवास्वप्न देख रहा है...। ___ - और ऐसे दिवास्वप्न दिखाने वाले, केवल कुछ कर्मकांड के आधार पर चमत्कार दिखाने की उपहासास्पद बातें करते हैं। भले दिखायें वे चमत्कार, परन्तु उसको अध्यात्म नहीं कहा जा सकता। जादूगरी कह सकते हैं। अध्यात्म इससे भिन्न है।
- विनाशक विभीषिकाओं से भरे आपत्तिकाल में से हम गुजर रहे हैं। आध्यात्मिक साधनाएँ या चर्चा करने वाले मूक दर्शन कर रहे हैं... वे निराश दिखाई पड़ते हैं...।
- उज्ज्वल भविष्य की संरचना क्या असंभव है? न धन की कमी है, न साधनों की। न शिक्षा की कमी है, न कला की। न शास्त्रों की कमी है, न विद्वानों की।
For Private And Personal Use Only