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यही है जिंदगी
१८७ - जब कभी किसी दुःखी जीवों की सहायता कर, उनके विषाद को दूर करें, उनके मुख पर आनंद के फूल खिलें... तब आप भी आनंद से भर जाया करें। __शांतिनिकेतन में कविवर रवीन्द्रनाथ, अपने निवासस्थान के आगे मैदान में बैठे थे। आँखें बंद थी और होठों पर स्मित था। कलाकार नंदलालबाबू आकर पास में ही बैठ गये थे। रवीन्द्रनाथ ने जब आँखें खोली... नन्दबाबू को देख, पूछा :
'कब आए नन्दबाबू?' 'आधा घण्टा हुआ, आप भावसमाधि में थे...' 'मैं आनंद का अभ्यास कर रहा था।' 'आनंद का अभ्यास? वह कैसे?' 'हाँ, ऐसे मधुर और तेजोमय वातावरण को हृदय में भरते रहने से आनंद का अभ्यास होता है। नंदबाबू, आनंद तो अमृत है अमृत!
- सभी जीव आनंद को प्राप्त करें... - सभी जीवों के खेद... उद्वेग... विषाद दूर हो...
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