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यही है जिंदगी
१८४ ___ आप मुझे दर्शन देंगे? मैं जानता हूँ कि आप अरूपी हैं, इसलिए मैं आपका दर्शन नहीं कर सकता, परन्तु मैंने यह भी जान लिया है कि आप 'रूपी' भी हैं! आपके दर्शन कोई कर सकते हैं, परन्तु तब तो दर्शन की प्यास ही नहीं रहती है न? बिना प्यास, दर्शन का आनंद कैसे मिलेगा? जब प्यास है दर्शन की, आप मेरे लिये 'अरूपी' रहते हैं... जब दर्शन की प्यास ही नहीं रहेगी, आप मेरे लिये 'रूपी' बनेंगे... क्या मतलब? क्या मेरे हृदय में विशुद्ध प्रेम पैदा होगा तब दर्शन देंगें? तो शीघ्र ही मेरे हृदय को उस प्रेमामृत से भर दो।
हे अंतर्यामी।
आप मेरे निर्दभ हृदय को जानते हैं। आप मेरे आर्तनाद को सुनते हैं। आप मेरे मनोभाव को प्रत्यक्ष देखते हैं... फिर भी आप उदासीन भाव क्यों धारण किये बैठे हो? या तो आप मुझे स्पष्ट कह दें : 'तू अयोग्य है... तेरी पात्रता नहीं है... तुझे विशुद्ध प्रेम नहीं मिल सकता...' आप चाहें जितने प्रहार करें... __ तो फिर मुझे योग्यता-पात्रता कौन प्रदान करेगा? आप ही को प्रदान करनी होगी... क्योंकि आपके सिवा और किसी से भी मैं याचना नहीं करता, नहीं करूँगा।
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