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यही है जिंदगी
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व ८५. वहाँ नहीं, यहाँ देखें!
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एक दिन मयूर को अपनी कर्कश आवाज से खेद हुआ। उसने देवी सरस्वती को कहा : 'देवी, मैं आपका वाहन हूँ। फिर भी मेरी आवाज कर्कश क्यों? कोयल की आवाज, मेरी आवाज से मधुर क्यों? क्या मेरे लिए यह दुःखप्रद घटना नहीं है?' __ देवी ने कहा : 'वत्स, मधुर स्वर से कोयल सुखी है, तू अपने सुन्दर पिच्छों से सुखी बन।' मयूर ने कहा : 'ऐसी सुन्दरता से क्या, जबकि आवाज मधुर न हो?'
देवी ने कहा : 'जो विशेषता तुझे मिली है, इससे संतोष मान ले... दूसरों की विशेषताओं को देखकर ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए, ईर्ष्या से दुःख बढ़ता है।'
० ० ० - मनुष्य के मन की बात मयूर ने कह दी है, ताकि मनुष्य को दुःख न लगे! मनुष्य को कितना भी सुख मिला हो, वह उससे संतुष्ट नहीं होता है। वह दूसरों के सुखों को देखता रहता है और ईर्ष्या से जलता रहता है। ___- ईर्ष्या आग है। जिस हृदय में वह रहती है उसी हृदय को जलाती रहती है। ___ - एक व्यक्ति कहता है : 'मेरे लड़के तो अच्छे हैं परन्तु मेरी पत्नी लड़ाकू है, मेरे मित्र की पत्नी कितनी शान्त और प्रसन्न है...' वह अपने आपको पत्नी के विषय में दुःखी मानता है, वह कभी पुत्रों को लेकर अपने आपको सुखी अनुभव नहीं करता!
- दूसरा व्यक्ति कहता है : 'मेरा परिवार तो अच्छा है, परन्तु मेरे पास रुपये नहीं हैं, मेरे भाई के पास लाखों रुपये हैं...' यह व्यक्ति अपने भाई के रुपयों को ही देखा करता है और इस बात से वह दुःखी है...
- एक महानुभाव कहते हैं : 'मेरे पास लाखों रुपये हैं, परन्तु समाज में मेरी गिनती नहीं होती है, मेरा मित्र समाज में प्रमुख व्यक्ति माना जाता है... ये महानुभाव मित्र की सामाजिक प्रतिष्ठा को देखकर दुःखी है।
- मनुष्य के पास जो होता है, उससे उसको संतुष्टि नहीं है। जो सुख
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