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यही है जिंदगी
१८१ __- कौन किसको कहे? कोई किसी की सुनने को ही तैयार नहीं है। सुनाने को सभी तैयार हैं।
- नये-नये भव्य जिनमंदिर बन रहे हैं, दर्शन कर अपूर्व आह्लाद होता है, परन्तु जिनप्रतिमाओं के चक्षुओं में जब उपालम्भ का भाव पढ़ता हूँ, तब हृदय चित्कार कर उठता है...
- 'मेरे वचनों की, मेरी आज्ञाओं की अवहेलना... उपेक्षा कर के क्या तुम मेरी भक्ति करते हो? इस प्रकार क्या तुम मोक्षमार्ग पर चल सकते हो? भ्रमणा में मत रहो... मोक्षमार्ग पर चलने के लिए मेरी आज्ञाओं को ठीक रूप में समझो।' __ हे प्रभो, यह तो मैंने अपने हृदय में उठने वाली बातें कह दी है... तेरे संघ
और शासन के मौजूदा हालात को देखकर, जो दुःख और वेदना दिल में पैदा हुई...उगल दी है...। यदि मेरी कोई भूल होती हो... तो मुझे क्षमा कर देना... मेरी धारणाएँ बदल देना... अन्यथा संघ और शासन की शान को पुनःस्थापित कर देना...
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