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यही है जिंदगी
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ज्ञान और चारित्र की प्रेरणा कहाँ से मिलेगी ? उन सभी जीवों को जिनवचनों का अमृत कौन पिलाता है ? क्या किसी की भी जिम्मेदारी नहीं है ?
श्रद्धा की जड़े हिल गई हैं...
अश्रद्धा परमं पापम्
व्यापक होता जा रहा है।
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ज्ञान का दीपक बुझ - सा गया है...
चारित्र के फूल कुम्हला - से गये हैं....
फिर, मानव-जीवन की सफलता किस बात को लेकर गाई जाए? 'अश्रद्धा घोर पाप है' - जो आज जन-जन में
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अज्ञान का घोर अन्धकार ज्यादा प्रगाढ़ होता जा रहा है, मनुष्य इस अन्धकार में भटक रहा है...
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चारित्र क्षत-विक्षत होता हुआ विलख रहा है...
फिर भी शास्त्र और शास्त्रकारों की दुहाई देते हुए अनेक 'पण्डित' शारदीय मेघों की तरह गर्जना करते हैं ।
एक बूंद भी आकाश से बरस नहीं रही है... केवल मेघों की गर्जना ....
फिर भी कुछ मोर नाचते जरूर हैं। केकारव भी करते हैं...।
- अन्धा अनुकरण हो रहा है फैशनों को अपनाने में नहीं है शरीर - स्वास्थ्य का खयाल, नहीं है मर्यादाओं के पालन का खयाल... ।
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अनेक बुरे व्यसनों में लोग बुरी तरह फँस रहे हैं। फलस्वरूप लोग अनेक रोगों के शिकार बनते जा रहे हैं । वैषयिक सुखों की तीव्र लालसा भड़क उठी है।
धार्मिक स्थानों में भी सत्ताकांक्षी लोगों ने अनेक झगड़े खड़े कर रखे हैं। अज्ञानी और अल्पज्ञ लोगों के अहंकार ने मंदिरों में एवं धर्मस्थानकों में क्लेशपूर्ण वातावरण पैदा किया है।
श्रीमन्तों की सरगर्मी भी धर्मस्थानों में ज्यादा उगलती है । श्रीमन्ताई के औद्धत्य से बचने वाले श्रीमन्त कितने ? श्रीहीन श्रीमन्तों की संख्या बढ़ती जा रही है।
अल्पज्ञ लोग 'सर्वज्ञ' की तरह धर्मक्षेत्र में हस्तक्षेप करने लगे हैं। एकान्तवाद की बोलबाला हो रही है। 'अनेकान्तवाद' शास्त्रों में बन्द पड़ा है। शास्त्र-निरपेक्ष बातें बहुत हो रही है ।
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