________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
यही है जिंदगी
१७९
ओफ्फोह! ये क्या हो रहा है
चुप-चुप गिरती, नामालूम-सी बारिश के दरमियान मैं मौन धारण किये बैठा था। संघ और जिनशासन के विषय में सोच रहा था...।
एक हाँफती-सिसकती-सी आन्तर-आवाज, विचारों की तह पर रेंगती हुई... बाहर तैर आयी थी। ___ - अपने आपको ‘जैन' कहलाने वालों के हृदय में, 'जिन' के प्रति, जिनवचनों के प्रति श्रद्धा का दीपक जल रहा है क्या? 'जिन' का अर्थ भी जानते हैं क्या?
- श्रद्धा केवल नामशेष ही रह गई है? -- केवल कुछ धार्मिक क्रियाकलापों में ही शासनपरस्ती रह गई है क्या? - छोटी-बड़ी शोभायात्रा-जुलूस निकालने में ही शासन-प्रेम मान लिया
जाए?
- और सम्यग्ज्ञान? एकान्तवाद से भरपूर धर्मोपदेश देनेवालों में सम्यग्ज्ञान? - जिनको नहीं है निश्चय-व्यवहार का ज्ञान, जिनके पास नहीं है उत्सर्गअपवाद का ज्ञान, जिनको नहीं है नय और निक्षेप का ज्ञान... जिनके पास नहीं है जिनागमों का ज्ञान... वैसे धर्मोपदेशक क्या सम्यग्ज्ञान दे सकते हैं? जो स्वयं सम्यग्ज्ञानी न हो, वह दूसरों को सम्यग्ज्ञान कैसे दे सकता है? ___- आज जिनशासन के कौन सरताज हैं? अपने आपको सरताज मान लेने वाले तो अनेक हैं, परन्तु वह एक मिथ्या गर्व है, पाखण्डी अभिमान है। __- अज्ञान और अनाचारों में पथभ्रष्ट बने हुए अनेक जैनों की घोर उपेक्षा कौन कर रहा है? इन लोगों को ज्ञान का प्रकाश देने का एवं सदाचारों का अमृत प्रदान करने का कर्तव्य किसका है? ___- सारी की सारी बुराइयों को 'काल' और 'कर्मों' पर छोड़कर शासन के सूत्रधार कहलाने वाले महापुरुष अपनी-अपनी गा रहे हैं... क्या यह एक जघन्य अपराध नहीं है?
- जैन-परिवार केवल भारत में ही नहीं, विश्व के अनेक देशों में हजारों की संख्या में फैले हुए हैं, लाखों जैन विदेशों में रहे हुए हैं, उन लोगों को श्रद्धा,
For Private And Personal Use Only