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यही है जिंदगी
- मोक्ष ऐसे समतायोगी का होता है।
समतायोगी तो 'मोक्षेऽप्यनिच्छ:' होता है यानी मोक्ष पाने की भी इच्छा उनमें शेष नहीं रहती है। सभी इच्छाओं से मुक्त मनुष्य ही सभी कर्मों से मुक्ति पा सकता है। ___ - परन्तु मोक्ष चाहिए किसको?
- इन्द्रियों की परवशता का त्याग करना नहीं है और बातें बनाते हैं, मोक्ष की।
- कषायों का सहारा छोड़ना नहीं है और बातें करते हैं, मोक्ष की। निरी आत्मवंचना... निरी परवंचना..
- जब तक इन वंचनाओं से मुक्ति नहीं पायेंगे तब तक कर्मों से मुक्ति कैसे पायेंगे? हे प्रभो, मुझे राग-द्वेष से मुक्त कर दो... मुझे समतायोगी बना दो...। कब मैं समतायोगी बनूँगा? कितने जन्म लेने पड़ेंगे समतायोगी बनने के लिए? पता नहीं...
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