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यही है जिंदगी
१६८ क्या आत्मज्ञान पाने के लिए विगत में लौटना आवश्यक है? अतीत के असंख्य स्मृति-खंडों में भटकना जरूरी है?
- क्या अद्वैत अवस्था प्राप्त करने के लिए अनागत की अनंत कल्पनाओं में उलझना, बुद्धिमत्ता होगी मेरी? सिर्फ अन्दाजों से तृप्ति हो सकती है?
- मुझे तो पल-पल... क्षण-क्षण जागृति में जीना है। एक-एक क्षण को आनंद से तरबतर करना है।
- एक दरिद्र मनुष्य बोलता रहता है : मुझे श्रीमन्त होना है... धनवान होना है...।
- एक रुग्ण मनुष्य बोलता रहता है : मुझे पहलवान बनना है... रोगहीनतन्दुरुस्त बनना है...
- एक मूर्ख मनुष्य बोलता रहता है : मुझे तीव्र मेधावी... प्रज्ञावन्त बनना है... ___ हम इन लोगों की बातें सुनकर हँसते हैं न? कोई टोकता भी है : 'हँसो मत... उनको दुःख होगा...।' ___ हाँ, मेरी बात पर भी आप मत हँसना । 'यह क्या वर्तमान में जीयेगा? अतीत-अनागत के अनंत महासागर में गोते खाने वाला...। वर्तमान का विचार भी नहीं कर सकता...।' मुझे दुःख होगा...। ___ - सोचना हो ऐसा तो सोच सकते हो। मनुष्य की योग्यता का यदि अतीत के सहारे मूल्यांकन करते हों तो मूल्यांकन कर लें। मेरा अतीत मैं भूल जाऊँगा... क्या आप याद रखेंगे?
- आप क्या याद रखते हैं और क्या भूल जाते हैं - यह भी मुझे नहीं सोचना है, यह सोचना भी वर्तमान क्षण का प्रमाद ही होगा न? इसलिए मैं तो मेरे सामने वाले पत्थर पर लिखूगा : 'क्षण'। ___ - जॉन रस्किन के 'आज' से भी मेरा 'क्षण' मुझे ज्यादा जाग्रत रख सकेगा। मुझे प्रमत्त नहीं होने देगा।
- श्रमण भगवान महावीरस्वामी का 'समय' तो बहुत सूक्ष्म कालखंड है। वह समय-समय की जागृति तो इस जन्म में संभव नहीं लगती है...।
- मन सशक्त चाहिए, मन समर्थ चाहिए वैसी जागृति के लिए | - वातावरण पवित्र चाहिए, निर्मल चाहिए... वैसी जागृति के लिए।
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