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यही है जिंदगी
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८०. वर्तमान में जीना सीखो
'जॉन रस्किन' विचारक मनुष्य था । वह अपनी मेज पर एक पत्थर रखता था। उस पत्थर पर 'आज' लिखा हुआ था ।
'मेरे हाथ से कहीं वर्तमान यों ही न निकल जाए, इसलिए मैं यह पत्थर अपने पास रखता हूँ।' यह था जॉन रस्किन का प्रत्युत्तर ।
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जिस प्रकार मनुष्य धन-संपत्ति का, स्नेह-संबंधों का, शरीर एवं परिवार का मूल्यांकन करता है, उस प्रकार क्या वर्तमान समय का मूल्यांकन करता है ?
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श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने कितना गहन एक सूत्र दिया है । 'समयं गोयम! मा पमायए' एक क्षण का भी प्रमाद मत कर, गौतम । '
परमात्मा तो पूर्ण ज्ञानी होते हैं । वे एक-एक क्षण का महत्त्व जानते ही हैं। उन्होंने मोक्षमार्ग के यात्रियों को यह महत्त्व समझाया । 'एक-एक क्षण मूल्यवान है, उसका मूल्यांकन करो, सदुपयोग करो।'
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तीव्र वेदना की अनुभूति होती है यह सोचकर कि तमाम उम्र भ्रमों में जीता रहा। अपना कीमती वक्त अंतहीन उलझनों में गुजारने के सिवाय कुछ भी नहीं किया है।
समाज में सर्वत्र अनवरत शिकायतों का अंतहीन सिलसिला चल रहा है... कब राहत मिलेगी इस दमघोंट उमस से ?
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गर्दभरा मटमैला आसमान देखता हूँ...
क्या जरा सी भी फुहार नहीं बरसेगी आसमान के किसी कोने से ?
- मुझे अपने वर्तमान क्षण को ... हर वर्तमान क्षण को ज्ञानवारि से नवपल्लवित करना है... क्या घनघोर वर्षा होगी?
शास्त्रों का... धर्मग्रन्थों का ज्ञान है... फिर भी एक विराट खालीपन से मेरा दम घुटता है। यह रिक्तता भरीपूरी जिन्दगी में निरर्थकता का अहसास पैदा करती है।
मेरे भीतर... पंख फड़फड़ाता आतम-पंखी... अनंत आकाश में उड़ान भरना चाहता है... सिद्धशिला तक उसे पहुँचना है... परन्तु मैंने सभी दरवाजेखिड़कियाँ बन्द कर लिए हैं। क्या इससे मेरे भीतर का वह पंखी ... घुटनभरी मौत का शिकार हो जायेगा ?
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