________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
यही है जिंदगी
www.kobatirth.org
८२. आसक्ति से बचते रहना
प्रश्न : कोऽन्धः ? अन्धा कौन ?
उत्तर : यो विषयानुरागी ।
जो विषयानुरागी होता है ।
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
3
१७३
विषयासक्त मनुष्य अपनी आँखों से देखते हुए भी अन्धा है । विषयासक्ति मन का अन्धापन है। मन का अन्धापन मनुष्य को विवेकभ्रष्ट करता है। विवेकभ्रष्ट मनुष्य जो भी प्रवृत्ति करता है, उसके परिणाम स्वरूप वह दु:ख ही पाता है।
एक नया-नया आत्मसाधक पुरुष, अपने गुरुदेव के पास गया और प्रश्न किया :
'गुरुदेव, मुझे 'आसक्ति' के विषय में स्पष्ट बोध करने की कृपा करें ।' गुरुदेव ने कहा : 'वत्स, तू कल एक पिंजरा और कुछ स्वादिष्ट फल लेकर आना ।'
दूसरे दिन वह पुरुष लोहे का एक पिंजरा और स्वादिष्ट फल लेकर गुरु के पास पहुँचा। एक वृक्ष की छाया में दोनों बैठे। गुरु ने कहा : 'वत्स, एक फल तू बाहर निकाल कर वृक्ष से थोड़ा दूर रख दे।'
उसने फल रख दिया। वृक्ष के ऊपर बैठे हुए बंदर ने वह फल देख लिया । धीरे से वह नीचे उतरा और फल लेकर वृक्ष पर जा बैठा । फल खाया... और दूसरे फल की आशा में वह उस पुरुष की ओर देखता रहा! गुरु ने कहा :
'वत्स, थोड़े दूर जाकर इस पिंजरे में फल रखना और पिंजरे को खुला रखना।' उस पुरुष ने गुरु की आज्ञा का पालन किया ।
बंदर वृक्ष से नीचे उतरा, पिंजरे के पास गया... ज्यों ही उसने पिंजरे में
For Private And Personal Use Only
हाथ डालकर फल उठाया, त्यों ही पिंजरा बंद हो गया! बंदर का हाथ फँस गया। यदि वह फल को छोड़ देता है तो हाथ बाहर निकल सकता है, परन्तु वह फल छोड़ता नहीं है।
गुरु ने उस पुरुष को कहा: 'वत्स, जाकर पिंजरे का द्वार खोल दे ।' उसने खोल दिया। बंदर मुक्त हो गया और फल लेकर वृक्ष पर जा बैठा । फल खा लिया ।