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यही है जिंदगी
१७१ - वह सुनता रहा, मौन । फिर वह बोला :
आज दिन तक मैं परमात्म-स्वरूप में पत्थर देखता रहा, आज मैंने पत्थर में परमात्म-स्वरूप को देखा।
- पत्थर की मूर्ति में परमात्म-स्वरूप का दर्शन कैसे हो?
पहले तो परमात्म-स्वरूप का दर्शन करने की प्रबल इच्छा होनी चाहिए न? इसी इच्छा से प्रेरित होकर परमात्म-मंदिर में जाया जाए।
परमात्म-मंदिर में शांति हो, प्रसन्नता हो, पवित्रता हो। इसीलिए मंदिर में घी के दीपक जलते हैं न? इसीलिए सुगन्धी धूप होता है न?
परन्तु... जो लोग परमात्म-स्वरूप का दर्शन करने नहीं आते हैं मंदिर में, जो केवल भौतिक सुख पाने के लिए आते हैं, वे मंदिर के वातावरण को दूषित करते हैं।
- दूषित हृदय वाले मंदिर की पवित्रता कैसे समझेंगे?
स्मित! Have a friend for a smile and a smile for a friend. - अपनी आन्तर प्रसन्नता को स्मित के रूप में प्रगट होने दो।
- स्मित आन्तर प्रसन्नता की अभिव्यक्ति है। परन्तु वह स्मित सहज होना चाहिए।
एयर होस्टेस का भी स्मित होता है और सेल्समेन का भी स्मित होता है... परन्तु वह स्मित 'व्यवसाय' की दृष्टि का होता है, सहज नहीं होता। ___ - स्मित का घोर अकाल पड़ा है... और समस्या विकट तो यह है कि अन्न की तरह स्मित विदेशों में आयात नहीं किया जा सकता। ___ - आन्तर प्रसन्नता से अभिव्यक्त स्मित, मित्रता का अभिवादन है। मानवता का सच्चा स्वीकार है। यदि मित्र को, स्नेही को, स्वजन को देखने पर तुम्हारे मुख पर स्मित नहीं खिलता है, तो तुम निश्चित ही व्यथित हो अथवा चिंतित हो।
मेरे परिचित एक मुनिराज के मुंह पर मैंने कभी भी स्मित नहीं देखा। हास्यरस की किताब भी वे गंभीरता से पढ़ते हैं।
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