________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
यही है जिंदगी
१६९ - जीवन-व्यवस्था स्वस्थ-तन्दुरुस्त चाहिए वैसी जागृति के लिए। मन निर्बल है, वातावरण दूषित है, जीवन-व्यवस्था जैसा कुछ है ही नहीं...
- जब इस अवदशा को सोचता हूँ, तब हजारों बिच्छुओं के डंकों की चुभन होती है... तिलमिलाहट भरी घोर यातना होती है... और ऐसा महसूस करता हूँ कि जैसे चेतना की तहें छीली जा रही हों... ___ 'नहीं सोचना है ऐसा कुछ भी...' निर्णय मेरा डगमगा जाता है... सोचने लगता हूँ। पता नहीं लगता कि जागृति की किसी खुशनुमा सुबह की ओस में कब स्नान करूँगा? ___ - प्रमाद की कुछ अवस्थाएँ जीवन के साथ तीव्रता से जुड़ी हैं। प्रमादाचरण से छुटकारा मिलने की कोई सम्भावना नहीं दिखती है... और प्रमाद प्रिय भी लगता है मेरे मन को...
कैसी उलझन पैदा हो गई है? ___ - याद करता हूँ उन अप्रमत्त साधक महापुरुषों को... भावपूर्ण नमन करता
- श्रमण भगवान महावीर स्वामी के वचनों को याद करता हूँ... सत्य मानता हूँ।
मेरे 'क्षण' को वे सभी अनवरत आनंद से भरपूर रखें... प्रसन्नता से जीवंत रखें... तो ही कृतार्थ हो सकता हूँ।
For Private And Personal Use Only