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यही है जिंदगी
सीताजी ने प्रेम से सुशर्मा को अपने पास बुलाया और प्रेम से कुशलता पूछी। लक्ष्मणजी ने कपिल को निर्भय किया। उसकी दरिद्रता दूर कर दी।
-- तब कपिल को कितना पश्चात्ताप हुआ होगा? अपरिचितों में कोई भगवान भी होते हैं... कोई महात्मा भी होते हैं... कोई बड़े सत्ताधीश भी हो सकते हैं... कोई बड़े ज्ञानी भी हो सकते हैं... इसलिए किसी भी अपरिचित का अनादर या तिरस्कार नहीं करें |
0 स्मित के साथ आदर दें। 0 सभ्यता से बात करें।
अपरिचित के प्रति विश्वास करना या नहीं करना - यह बात तो व्यक्तिनिष्ठ है। मैं नहीं कह सकता कि सभी अपरिचितों पर विश्वास कर लें। विश्वास नहीं करें तो चलेगा, तिरस्कार नहीं करना है। -- विश्वास परिचय के बाद किया जाता है।
- दूसरी बात, क्या सभी परिचित भी विश्वसनीय होते हैं? क्या परिचित भी विश्वासघात नहीं करते हैं कभी?
- अपरिचित कभी... पूरी निष्ठा से विश्वास निभाते हैं, परिचित कभी घोर विश्वासघात करते हैं! - विश्वासपात्र कौन? परिचित या अपरिचित? दोनों में से कोई नहीं! और दोनों में से कोई भी!
- धर्मग्रन्थ कहते हैं : मनुष्य के पुण्यकर्म का उदय होता है तो उसे विश्वासपात्र व्यक्ति मिल जाता है। मनुष्य के पापकर्म का उदय होता है तो कोई भी व्यक्ति विश्वासघात करता है! पुण्यकर्म का उदय बदलता रहता है! पापकर्म का उदय भी बदलता रहता है! 'तो क्या करें?' प्रश्न उठता है मन में! हम किसी का विश्वासभंग नहीं करें! परिचित का या अपरिचित का! किसी के साथ विश्वासघात नहीं करें, यह होगी हमारी गुणात्मक योग्यता! - गुणात्मक योग्यता वाला मनुष्य ही विश्वसनीय बनता है। - गुणवान मनुष्य अपरिचित होगा तो भी विश्वसनीय होगा।
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