________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
यही है जिंदगी
१५१
तू अपने हृदय में दृढ़ निश्चय कर ले : मुझे रागी -द्वेषी जीवों की सहानुभूति नहीं चाहिए । सहजता से परस्पर सहानुभूति होनी चाहिए। दूसरों के प्रति मेरी सहानुभूति वैसी ही रहेगी ।
- सहानुभूति की याचना तो नहीं होनी चाहिए ।
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
याचना से प्राप्त सहानुभूति दीनता पैदा करती है, विवशता पैदा करती है। हीनभावना पैदा करती है।
कृपा चाहिए परमात्मा की, अनुकम्पा चाहिए परमात्मा की,
सहानुभूति चाहिए संतों की ...
कि जिससे मैं अदीन भाव से जीवन बसर कर सकूँ! परनिरपेक्ष जीवन जी सकूँ ।
For Private And Personal Use Only