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यही है जिंदगी
१५६ शिष्ट नहीं थे? क्यों उन्होंने लोगों की असत्य बात मान ली? क्यों सीताजी को नहीं पूछा? ___ - क्या बहुत सारे धर्मग्रन्थ पढ़ लेने मात्र से मनुष्य शिष्ट बन जाता है? क्या बहुत धन कमा लेने से मनुष्य शिष्ट बन जाता है? क्या बड़ी उम्र होने से मनुष्य में शिष्टता आ जाती है?
- जो मनुष्य द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव का सापेक्ष विचार नहीं कर सकता है, वह क्या शिष्ट कहलायेगा? जो मनुष्य अहंकार और तिरस्कार से भरा हुआ है, वह मनुष्य शिष्ट कहलायेगा? ___- कोई तो बताये... शिष्ट पुरुष कहाँ है? स्वोत्कर्ष और परापकर्ष में डूबे रहने वाले लोगों को शिष्ट कौन मानेगा? आज तो सर्वत्र स्वोत्कर्ष और परापकर्ष का असाध्य रोग व्यापक बन गया है। ऐसे असाध्य रोग से पराभूत लोगों की परवाह सच्चा संत, सच्चा साधक नहीं कर सकता है।
- संतों पर श्रीमन्तों का प्रभुत्व देखता हूँ। श्रीमन्तों पर सत्ताधीशों का अधिकार देखता हूँ। सत्ताधीशों पर अर्थ और काम का आधिपत्य देखता हूँ। ऐसे लोगों में शिष्टता हो सकती है क्या? नहीं, शिष्टता का लोप हो गया
- जो शिष्ट नहीं हैं, अशिष्ट हैं... ऐसे लोग कुछ भी बोलें, कुछ भी सोचें... हमें उनकी परवाह नहीं करनी है। ___ - अशिष्ट और अभद्र लोग खुश हों या नाखुश हों - हमें हर्ष-शोक नहीं करना है। ऐसे लोग निन्दा करें या प्रशंसा करें, हमें समभाव में रहना है। ___ - प्रशंसा करने वालों को शिष्ट मान लेने की भूल नहीं करनी है। निन्दा करने वालों को अशिष्ट मान लेने की जल्दबाजी नहीं करनी है। आज निन्दा करनेवाले कल प्रशंसक बन सकते हैं। आज प्रशंसा करनेवाले कल निन्दक बन सकते हैं।
- दुनिया से निरपेक्ष संत ही निर्दभ जीवन जी सकता है। दुनिया की निगाह में अच्छा दिखने की अपेक्षा, मनुष्य को दंभी बनाती है। ___- आत्मसाक्षी से जीवन जीना होगा। निर्भयता से - निश्चिंतता से जीवन जीना होगा। यदि हमारे जीवन में बुराई है, तो बुराई को स्वीकार करना होगा... बिना किसी हिचकिचाहट के।
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