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यही है जिंदगी
१६० संबंधों की जाल कर्मों की जाल से कम नहीं हैं। संबंधों के बंधन कर्मों के बंधन से कम नहीं हैं। ___ ज्यों-ज्यों संबंध कम होते जाते हैं त्यों-त्यों कर्म भी कम होते जाते हैं। संबंधों के बंधन टूट जायेंगे तब कर्मों के बंधन भी टूट जायेंगे। दोनों का अंत एक साथ होगा।
यदि यही सिद्धांत है तो... - संबंध बढ़ाने की प्रवृत्ति स्थगित करनी होगी। - संबंधों के माध्यम से महानता की कल्पना को गलत मानना पड़ेगा। - संबंधों की उपयोगिता कम करनी होगी। - अनिवार्य संबंधों से हृदय को अलिप्त रखने का अभ्यास करना होगा। - निःसंगता की ओर प्रतिपल आगे बढ़ना होगा। 'कब मेरी आत्मा ऐसी अवस्था प्राप्त करेगी? कब सभी संबंधों के बंधन टूटेंगे?' यह प्रश्न तो आज भी बिना प्रत्युत्तर ही खड़ा है...|
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