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यही है जिंदगी
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• एक खूबसूरत युवक है ।
उसके पास संपत्ति है, पत्नी है, बच्चे हैं। शरीर निरोगी है। यानी उसकी बाह्य दुनिया सुखप्रद है, परन्तु फिर भी वह दु:खी है। उसके विचारों से मालूम हुआ कि दूसरों की ज्यादा संपत्ति से उसके मन में ईर्ष्या है।
दूसरी स्त्री के प्रति उसके मन में प्रेम है।
अपने बच्चों के प्रति उसको प्रेम नहीं है ।
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परमात्मभक्ति नहीं है और सत्समागम नहीं है ।
यानी उसके निम्न स्तरीय विचारों से उसकी भीतर की दुनिया दुःखपूर्णवेदनापूर्ण बनी हुई है।
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दूसरा एक युवक है, माता और पिता का स्वर्गवास हो गया है। नहीं है उसके पास संपत्ति, नहीं है सौन्दर्य । उसकी बाह्य दुनिया दुःखों से भरी हुई है, परन्तु फिर भी उसके मुँह पर सदैव स्मित रहता है, आँखों में चमक दिखती है और बदन में स्फूर्ति ही स्फूर्ति रहती है। उसके विचारों से ज्ञात हुआ कि -
अपनी मर्यादित आय से वह संतुष्ट है । अपने परिवार के प्रति कर्त्तव्यनिष्ठ है । परमात्मशक्ति में वह विश्वास करता है । परोपकार के कार्यों में दिलचस्पी रखता है ।
दूसरों के गुण ही देखता है।
अपनी आवश्यकताएँ मर्यादित रखता है।
यानी उसके उच्चस्तरीय विचारों से उसकी भीतर की दुनिया सुखपूर्णआनंदपूर्ण बनी हुई है ।
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उन्नत विचारों से, पवित्र विचारों से अपनी आन्तर दुनिया को सुन्दर और समृद्ध बनाने का संकल्प कर, हे आत्मन्! उस पुरुषार्थ में लग जा । मानवजीवन के मूल्यवान समय को सार्थक बनाने का भरसक प्रयत्न कर । 'जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि' इस सत्य को हृदयस्थ करके, दृष्टि को दिव्य बना ले !