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यही है जिंदगी
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६७. अध्यात्म यानी क्या?
'Spiritualism is useless if not practical, it is practical.'
'शॉ डेसमन्ड' की 'नोबडी हेज एवर डाइड' किताब में जब ये दो वाक्य पढ़े, मैं उस पर चिन्तनशील बना।
अध्यात्मवाद केवल वाचिक वाद-विवाद तक ही सीमित रखा जाए तो उसका कोई मूल्य नहीं रहता।
जीवन में भौतिकवाद! वाणी में अध्यात्मवाद! यह है सबसे बड़ा विसंवाद! अध्यात्मवादियों के जीवन में ही विसंवाद? इससे अध्यात्मवाद की प्रतिष्ठा को बहुत बड़ा धक्का लगा है। 'अध्यात्म' की परिभाषा करते हुए उपाध्याय श्री यशोविजयजी कहते हैं :
___ 'आत्मानमधिकृत्य या प्रवर्तते क्रिया... तदध्यात्मम् ।' आत्मा को केन्द्र में रखते हुए जो क्रिया सम्पन्न हो, वह अध्यात्म है। 'मेरी आत्मा पापकर्मों से लिप्त न हो!' 'मेरी आत्मा पर लगे हुए कर्मों का नाश हो!' 'मेरी आत्मा के ज्ञानादि गुणों का आविर्भाव हो!' यह है अध्यात्मदृष्टि। इस अध्यात्मदृष्टि से जीवन की एक-एक क्रिया सम्पन्न हो। आत्मा की अजर-अमर-अक्षय स्थिति का भान सदैव रहे। भौतिक विश्व के द्वन्द्वों में भी मन स्थिर और स्वस्थ रहे। स्वभाव दशा की चाह बढ़ती रहे! विभावदशा की रमणता घटती रहे। शुभाशुभ कर्मों से उत्पन्न परिस्थितियों में भी मेरा धर्मध्यान अखण्ड रहे | साधनभूत भौतिक पदार्थों में मेरी आसक्ति कभी बंधे नहीं। क्षणिक के लिए शाश्वत आत्मा को कभी भूलूँ नहीं। मेरे समग्र जीवन-व्यवहार में मेरी अध्यात्मदृष्टि प्रतिबिम्बित होती रहे। मेरे विचार, मेरी वाणी और मेरी काया अध्यात्मरस से निरंतर सिंचित रहे।
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