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यही है जिंदगी
११३ वीतरागी पूर्णज्ञानी बनता है!
सूक्ष्म विश्व में प्रवेश करने के लिये राग-द्वेष के विकारों से संपूर्णतया मुक्त होना अनिवार्य है। सूक्ष्म विश्व में न रागी प्रवेश कर सकता है, न द्वेषी प्रवेश कर पाता है! ऐसा क्यों? ___ क्योंकि वास्तविकता ऐसी ही है। राग-द्वेष से मुक्त आत्मा में पूर्ण ज्ञान का निःसीम प्रकाश जगमगाने लगता है। यह प्रकाश शाश्वत होता है, अविनाशी होता है। इस ज्ञान-प्रकाश में प्रतिक्षण... प्रतिपल... संपूर्ण स्थूल और सूक्ष्म विश्व पूर्णरूपेण दिखता रहता है। सभी पदार्थ दिखते हैं, सभी पदार्थ की सभी अवस्थाएँ दिखती हैं।
पूर्ण दर्शन में राग नहीं होता, द्वेष नहीं होता! राग-द्वेष होते हैं अपूर्ण दर्शन से! कब मिटेंगे राग और द्वेष? ___ हालाँकि मैं जानता हूँ कि मेरी आत्मा की राग-द्वेष से मुक्त अवस्था भी सूक्ष्म विश्व में है ही! परन्तु उस अवस्था की, उस पर्याय की अनुभूति सूक्ष्म विश्व में प्रवेश किये बिना संभव नहीं है। कब होगा सूक्ष्म विश्व में मेरा प्रवेश? मैं नहीं जानता हूँ! ___ पदार्थों की प्रिय-अप्रिय अवस्थाओं के दर्शन से राग-द्वेष हो ही जाते हैं! पर्याय-दर्शन मिटे कैसे? दर्शन होता है पर्याय का ही! पर्याय के बिना द्रव्य का अस्तित्व असंभव है! द्रव्य की परिभाषा ही यही है ना - 'गुणपर्यायवद् द्रव्यम्'!
प्रिय-अप्रिय के विकल्पों से मुक्ति मिल जाय तो मान लूँगा कि मैं सिद्धशिला पर पहुँच गया! अशांति, संताप और उद्वेग के मूल स्रोत हैं ये प्रियाप्रियत्व के विकल्प! प्रियाप्रिय के विषय होते हैं द्रव्यों के पर्याय! द्रव्यों की भिन्न-भिन्न अवस्थाएँ! जहाँ देखो वहाँ पर्याय! जहाँ जाओ वहाँ पर्याय! । __सूक्ष्म विश्व में प्रवेश जब होगा और क्षेत्र-काल के बंधनों से मुक्त सभी द्रव्यों का... सभी पर्यायों के साथ ज्ञान-दर्शन होगा... तभी न होगा राग, न होगा द्वेष । विश्वास है कि एक दिन मैं इस अवस्था को उपलब्ध कर लूँगा।
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