________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
यही है जिंदगी
१२६
. सपने देखो... मगर सच्चे-सच्चे
उसके मुख पर उदासी फैली हुई थी।
यूं तो मकान के पास खड़ा बबूल का पेड़ भी उदास था और उस पेड़ के नीचे बैठा हुआ भिखारी भी उदास दिखता था। मध्याह्नकालीन उदासी पूरी गली में छाई थी। कहीं से भी हँसने की आवाज नहीं आ रही थी... कोई भी व्यक्ति हँसता हुआ नहीं दिखायी दे रहा था।
उसने उदास स्वर में पूछा : 'मेरा मोक्ष कब होगा?' उसके प्रश्न का उत्तर मुझे नहीं देना था। मेरे पास कहाँ वैसा विशिष्ट ज्ञान था कि मैं उसका भविष्य बता सकूँ? वास्तव में उसको भी 'मोक्ष' पाने की इच्छा होगी या नहीं, मैं नहीं जानता, परन्तु दुःखों से छुटकारा पाने की, अशांति और संताप से छुटकारा पाने की इच्छा तो थी ही, यह मैं जानता हूँ। परन्तु उसका प्रश्न सुनकर मेरा मन भी कुछ उदास हो गया! मनुष्य जब किसी गहरे विचार में खो जाता है तब क्या उसके मुँह पर उदासी दिखायी देती होगी? क्या गंभीरता को लोग उदासी मान लेते होंगे?
उसका प्रश्न मेरे चिन्तन का विषय बन गया! 'क्या मुझे मोक्ष चाहिए?' मैंने स्वयं को प्रश्न किया। 'मैं ही खो गया हूँ फिर मोक्ष किसको चाहिए?' प्रश्न का जवाब प्रश्न में था। जब तक 'मैं और मेरा' से मेरी मुक्ति नहीं होगी तब तक मोक्ष की तलाश वृथा है। 'अहं' से मुक्ति और 'मम' से मुक्ति वर्तमान जीवन का 'मोक्ष' बन सकता है। इस मोक्ष को पाये बिना वह 'मोक्ष' - सर्व कर्मों के क्षय से प्राप्त होने वाला मोक्ष नहीं पाया जा सकता है। ___ मैं और मेरा-की कल्पना से असंख्य इच्छाएँ पैदा होती रहती हैं और वे इच्छाएँ ही दुःखी करती हैं, अशान्त करती हैं! इच्छाओं से मुक्त नहीं होना है और शांति की तलाश है! कैसा विसंवाद चल रहा है जीवन में?
शांति की तलाश... तलाश ही बनी रहेगी क्या? अशांति ही जीवन का पर्याय बनी रहेगी क्या?
वह मेरे सामने ही बैठा था... मैंने उसके सामने देखा... मेरे मुँह से शब्द निकले : 'जब तू इच्छाओं से संपूर्ण मुक्त होगा तब तेरा मोक्ष होगा। जब मैं इच्छाओं से मुक्त बनूँगा तब मेरा मोक्ष होगा। इच्छाओं से तब मुक्ति मिलेगी, जब हम 'मैं और मेरा' - की कल्पना से मुक्त होंगे।'
For Private And Personal Use Only