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यही है जिंदगी
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उसकी उदासी चली गई... उसकी आँखों में नयी रोशनी आयी और वह बोला : 'सच बात है, सच बात है... I
स्वप्न !
निद्रा के स्वप्न और जागृति के स्वप्न !
निद्रा के स्वप्न पर अपना अधिकार नहीं होता, जागृति के स्वप्न पर अपना अधिकार होता है ।
भविष्य के सुहाने स्वप्न देखने की क्या मनुष्य को आदत होती है ? भविष्य के दुःस्वप्न देखने की भी मनुष्य की क्या सहजवृत्ति होती है ? भविष्य की कोई न कोई कल्पना! किसी कल्पना से भय... अव्यक्त भय लगता है, किसी कल्पना से अव्यक्त खुशी की अनुभूति होती है । जब अनुकूल परिस्थिति आती है, तब स्वर्ग की कल्पनाएँ... स्वर्ग के स्वप्न देखता हूँ। जब प्रतिकूलताएँ घेर लेती हैं तब नर्क के स्वप्न उभरने लगते हैं।
स्वप्न का स्वर्ग जब दूर-दूर जाता है, स्वर्ग की जगह उज्जड़... बीहड़ जंगल दिखायी देता है, तब मनुष्य निराश, उदास और भग्नहृदय हो जाता है । फिर भी स्वप्न देखने की आदत से मुक्ति नहीं पाता है ।
कभी कोई स्वप्न साकार बनता है... स्वप्न देखने की आदत बलवती बन जाती है। देखता जाता है स्वप्न । गाता जाता है निष्फलता के करुण गीत और जिंदगी का जीर्ण जनाजा उठाकर चला जाता है परलोक की यात्रा पर... | जिंदगी का स्वप्न पूरा हो जाता है ।
स्वप्न देखने का काम पूरा नहीं होता ।
जागृति में स्वप्न देखने की आदत से मुक्त होना, वर्तमान को सुखमय बनाने का उत्तम उपाय है । मन की आदत से छूटना सरल तो नहीं है | स्वप्न देखता है मन । स्वप्नों को छोड़कर वास्तविकता की भूमि पर टिकना मन के लिये मुश्किल तो होगा, परन्तु सुखप्रद - आनंदप्रद भी होगा।
यदि जागृति के स्वप्न को साकार करना है तो दृढ़ मनोबल रखना होगा, संघर्ष के लिये निरन्तर तैयार रहना होगा । निष्फलता में निराश नहीं होना होगा। सफलता नहीं मिले वहाँ तक पुरुषार्थ करते रहना होगा।
दो मार्ग है।
स्वप्न देखो मत, अथवा स्वप्न को साकार बनाने का भरसक प्रयत्न... निरंतर संघर्ष करते रहो।
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