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यही है जिंदगी
१२१ 'अहं' की वासना ज्यों-ज्यों विलीन होती जायेगी त्यों-त्यों 'मम' की वासना भी मंद होती जायेगी। 'अहं' के साथ 'मम' का गहरा सम्बन्ध है । मैं और मेरा!
यदि मैं ही नहीं हूँ, तो मेरा क्या है? कुछ नहीं! 'अहं' को मम होता है। 'अहं' नहीं तो 'मम' नहीं। 'नाऽहं! न मम!!'
महामंत्र है यह! मोह के जहर को उतारनेवाला है यह महामंत्र। इस महामंत्र का स्मरण किये बिना, जाप किये बिना मोह का जहर नहीं उतरेगा। तप करने पर, शास्त्र पढ़ने पर और सेवा करने पर भी मोह का जहर नहीं उतरेगा। ___ 'मेरा कुछ नहीं, यह विचार तो मैं कभी-कभी करता था, परन्तु ममत्व से मुक्ति नहीं पा सका। क्योंकि 'मैं नहीं हूँ, यह विचार तो मैंने कभी किया ही नहीं! 'मैं नहीं हूँ', इस विचार के बिना 'मेरा कुछ नहीं है, यह विचार कोई निश्चित प्रभाव पैदा ही नहीं कर सकता है। केवल बोलने का ही रह जाता है... 'मेरा कुछ नहीं है।'
'मैं नहीं हूँ' यानी मैं रूपी नहीं हूँ, मैं नामी नहीं हूँ, मैं कुछ भी नहीं हूँ। मेरा कुछ भी नहीं है। आज दिन तक मैंने मोहवश सारी दुनिया को... कि जो मिथ्या है, उसको मेरी माना था... दुनिया के पदार्थों में ममत्व किया था... इससे मैं दु:खी बना, अशान्त बना... भटकता रहा। अपने नाम और रूप को यथार्थ मानता रहा। राग-द्वेष, हर्ष-शोक और खुशी-नाखुशी के द्वन्द्वों में उलझता रहा। भ्रमणाओं में भ्रमित होता रहा।
अब भ्रमणाओं के घनघोर बादल बिखर गये! महामंत्र मिल गया मुझे। मेरे परम प्रियतम परमात्मा ने मुझ पर परम कृपा की! 'नाऽहं न मम...'
इस महामंत्र की निरन्तर रटना होती रहे मेरे घट-घट में! इस महामंत्र का अविरत गुंजन चलता रहे मेरी आत्मा के असंख्य प्रदेशों में...!
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