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यही है जिंदगी
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४७. पल पल बदलते रिश्ते
संध्या के बदलते हुए रंग देखता हूँ, मौसम के बदलते हुए रंग भी देखता हूँ और संसार के संबंधों के विषय में स्वतः चिन्तन शुरू हो जाता है । संसार के सारे सम्बन्ध भी कैसे बदल जाते हैं !
विशिष्ट ज्ञानी पुरुषों ने अपने ज्ञानबल से कुछ जीवात्माओं के जन्म-जन्म के संबंधों को जानकर दुनिया के सामने प्रस्तुत कर दिया है । यदि दुनिया के लोग गंभीरता से उन परिवर्तनशील सम्बन्धों की निःसारता समझ लें तो अनेक शारीरिक-मानसिक तनावों से मुक्त हो सकते हैं।
कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचन्द्रसूरिजी ने रामायणकालीन पात्रों के जन्म-जन्म के अनेक सम्बन्धों पर प्रकाश डाला है । भूतकालीन सम्बन्ध तो बताये ही हैं, कुछ भविष्यकालीन सम्बन्ध भी प्रकाशित किये हैं। जब रावण की आत्मा 'तीर्थंकर' बनेगी तब सीताजी की आत्मा गणधर बनेगी!
जिस रावण के प्रति सीताजी ने अपनी दृष्टि भी नहीं डाली थी, जिस रावण का सीताजी ने घोर तिरस्कार कर दिया था, जिस रावण का एक क्षण भी अपने चित्त में स्मरण नहीं किया था... उस रावण के साथ सीताजी का भविष्य में कितना प्रगाढ़ स्नेहपूर्ण सम्बन्ध होने वाला है ! गणधरों का तीर्थंकर के प्रति प्रगाढ़ - प्रशस्त राग होता है । सीताजी की आत्मा गणधर बनकर रावण की तीर्थंकरपद प्राप्त आत्मा से आत्मीय सम्बन्ध बाँधेगी! तीर्थंकर की आराधना - उपासना कर अपनी आत्मा को सिद्ध, बुद्ध, मुक्त कर देगी! यानी सीताजी की आत्मा, रावण की आत्मा के आलंबन से मोक्ष पायेगी ।
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आज इस जीवन में जिस व्यक्ति के प्रति मनुष्य घोर द्वेष करता है अथवा प्रगाढ़ स्नेह करता है, आवश्यक नहीं कि आनेवाले दूसरे जीवन में उनके साथ द्वेष ही करता रहे या स्नेह ही करता रहे! उसी रामायण में श्री हेमचन्द्रसूरिजी ने एक माता-पुत्र के सम्बन्ध की निःसारता बताते हुए बताया है कि राजकुमार सुकोशल अपने पिता - मुनिराज के दर्शन कर साधुजीवन अंगीकार करने के लिए तत्पर हो जाता है। उसकी माता सुकोशल से खूब प्यार करती है..... उसने सुकोशल को मना कर दिया ... वह नहीं चाहती थी कि सुकोशल साधु बने। इसलिये वह यह भी नहीं चाहती थी कि सुकोशल के पिता - मुनिराज उस