________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
यही है जिंदगी
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
८६
४३. अलग हो अतृप्ति से
एक विचार सामने आया : 'तृप्ति से मुक्ति !' जब तक मनुष्य विषयभोग से तृप्त नहीं होता है उसकी मुक्ति नहीं हो पाती ! तर्क दिया गया है : 'यदि मनुष्य विषयभोग से अतृप्त रहता है तो उसको वह अतृप्ति सताती रहती है, अतृप्त का ध्यान नहीं लगता है... ध्यान के बिना मुक्ति नहीं मिलती है !'
विचार प्रस्तुत करने वाले को मैंने कहा : 'भाई, विषयों के उपभोग से कभी तृप्ति संभव है क्या? तुम मानते हो न कि अतीतकाल में अपनी आत्मा ने अनंत जन्म लिये, उन जन्मों में अनंत विषयोपभोग किये, परन्तु क्या तृप्ति हुई ? कब तृप्ति होगी और कब मुक्ति पाओगे? यदि इस आशा में रहे कि 'मैं खूब वैषयिक सुख भोग लूँ, तृप्ति हो जायेगी और फिर मुक्ति मिल जायेगी !' यह तुम्हारी भ्रमणा होगी!
एक वृद्ध पुरुष मृत्यु- शय्या पर सोया था । उसकी पत्नी धर्मपरायणा थी । 'पति को मृत्यु के समय गुरुमुख से श्री नवकार मंत्र सुनने को मिल जाए तो पति का परलोक सुधर जाए...' इस भावना से प्रेरित होकर वह मुझे बुलाने आयी, मैं गया। उस वृद्ध पुरुष को मैंने नवकार मंत्र सुनाया और उसकी आत्मा को समता-समाधि मिले, वैसे दो शब्द कहे। उस वृद्ध पुरुष ने कहा : 'महाराज साहब, एक बात मेरे मन में चिन्ता पैदा कर रही है... अब भी मुझे स्त्री के अंगोपांग देखने की आसक्ति बनी हुई है... अब क्या होगा ?' मैंने पूछा : 'क्या जीवन में कभी भी विषय-वासना से मुक्त होने का पुरुषार्थ किया था? क्या कभी इस मानवदेह की अशुचिता का चिन्तन कर, देहासक्ति को मिटाने का प्रयत्न किया था?'
उन्होंने कहा : ‘नहीं, वैसा तो मैंने कुछ नहीं किया ।'
यदि विषयोपभोग से तृप्ति हो जाती तो इस वृद्ध पुरुष को तृप्ति हो जानी चाहिए थी। परन्तु तृप्ति नहीं हुई, मृत्यु पर्यंत अतृप्ति बनी रही।
आनेवाले भव में गहरी अतृप्ति लेकर जन्मेगा !
For Private And Personal Use Only
तृप्ति से मुक्ति नहीं परन्तु पहले तो अतृप्ति से मन को मुक्त करो । विषयोपभोग करते रहने से कभी भी अतृप्ति मिटेगी नहीं, अतृप्ति की आग विशेष प्रज्वलित होगी। अतृप्ति से मुक्त होने के लिए 'त्याग' का मार्ग स्वीकार करना ही होगा। विषयोपभोग का त्याग करना ही होगा ।