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यही है जिंदगी
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श्रमण
जमाली का यह क्रम निश्चित था - राजकुल जन्म लेना... यौवन में राजकुमारी प्रियदर्शना से शादी करना... फिर संसार से विरक्त होना.... जीवन स्वीकार करना... श्रुतज्ञानी होना... बीमार होना... दूसरे श्रमणों के साथ सैद्धान्तिक मतभेद होना... भगवान महावीर की अवज्ञा करना... श्रमणसंघ से निकल जाना... यह सब निश्चित था भगवान महावीर के केवलालोक में ।
भगवान महावीर की अपनी भी भवितव्यता थी न ! जमाली को दीक्षा देना और श्रमणसंघ में लेना- भगवान की भवितव्यता थी ... उस भवितव्यता के अनुसार ही उन्होंने जमाली को दीक्षा दी थी और श्रमणसंघ में प्रवेश दिया था। वे जानते थे कि 'एक दिन यह मेरा विरोधी बन जायेगा, मेरी सर्वज्ञता का अनादर करेगा, फिर भी उनको भवितव्यता के अनुसार ही चलना था ।
गोशालक को 'तेजोलेश्या' की शक्ति प्राप्त करने का उपाय बताते समय वे जानते थे कि इस शक्ति का प्रयोग गोशालक मेरे पर ही करेगा... फिर भी 'तेजोलेश्या' दे दी! भवितव्यता ने दिलवाई तेजोलेश्या !
उपाध्याय श्री विनयविजयजी ने 'शान्तसुधारस' में गाया है
'येन जनेन यथाभवितव्यं तद्भवता दुर्वारं रे...'
'जिस मनुष्य की जैसी भवितव्यता होगी, वह वैसा बनेगा ही, कोई उसे रोक नहीं सकता । '
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